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________________ 162 : प्राकृत व्याकरण उत्तरः-क्योंकि यदि किसी शब्द में 'ड' वर्ण आदि अक्षर रूप होगा; तो उस 'ड' का 'ल' नहीं होगा। जैसे:-रमते डिम्भः रमइ डिम्भो।। प्रश्न:-"प्रायः" अव्यय का ग्रहण क्यों किया गया है ? उत्तर:-"प्रायः" अव्यय का उल्लेख यह प्रदर्शित करता है कि किन्हीं किन्हीं शब्दों में 'ड' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ; असंयुक्त और अनादि होता हो तो भी उस 'ड' वर्ण का 'ल' वैकल्पिक रूप से होता है। जैसे:-बडिशम् वलिसं अथवा वडिसं।। दाडिमम्=दालिमं अथवा दाडिम।। गुड:-गुलो अथवा गुडो।। नाड़ी=णाली अथवा णाडी।। नडम्=णलं अथवा णड।। आपीड: आमेलो अथवा आमेडी।। इत्यादि।। किन्हीं-किन्हीं शब्दों में 'ड' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ; असंयुक्त एवं अनादि रूप हो; तो भी उस 'ड' वर्ण का 'ल' नहीं होता है। जैसेः-निबिडम्-निबिड।। गौडः गउडो।। पीडितम्= पीडिआ। नीडम्=नीडं। उडुः उडू।। तडित्-तडी।। इत्यादि।। ___ वडवामुखम्ः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप वलयामुहं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२०२ से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'व्' का लोप; १-१८० से लुप्त 'व' में से शेष 'आ' के स्थान पर 'या' की प्राप्ति; १-१८७ से 'ख' को 'ह' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसंक लिंग में प्राप्त 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर वलयामुहं रूप सिद्ध हो जाता है। गरूडः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप गरूलो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२०२ से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गरूलो रूप सिद्ध हो जाता है। तडागम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप तलायं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२०२ से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति; १-१७७ से 'ग्' का लोप; १-१८० से लुप्त 'ग्' में से शेष 'अ' को 'य' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुसंक लिंग में प्राप्त 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर तलाय रूप सिद्ध हो जाता है। ___ क्रीडति संस्कृत अकर्मक क्रिया का रूप है। इसका प्राकृत रूप कीलइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-२०२ से 'ड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति और ३-१३९ से वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कीलइ रूप सिद्ध हो जाता है। मोंडं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-११६ में की गई है। कुण्डम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कोंडं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११६ से 'उ' के स्थान पर 'ओ' की प्राप्ति: १-२५ से'ण' के स्थान पर पर्व व्यञ्जन पर अनस्वार की प्राप्ति: ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर कोंडं रूप सिद्ध हो जाता है। खग्गा रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३४ में की गई है। रमत संस्कृत अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप रमइ होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१३९ से वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन में 'ते' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रमइ रूप सिद्ध हो जाता है। ___ डिम्भः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप डिम्भो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर डिम्भो रूप सिद्ध हो जाता है। बडिशम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप वलिसं और वडिसं होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या १-२३७ से 'ब' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति; १-२०२ से वैकल्पिक विधान के अनुसार 'ड' के स्थान पर विकल्प रूप से 'ल' की प्राप्ति; १-२६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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