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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 97 नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से 'महुअं' और 'महूअं रूप सिद्ध हो जाते हैं।।।१-१२२।।
इदेतौ नुपूरे वा।। १-१२३।। नूपुर शब्दे ऊत इत् एत् इत्येतो वा भवतः।। निउरं नेउरं। पक्षे नूउर।।
अर्थः- नूपुर शब्द में रहे हुए आदि दीर्घ 'ऊ' के विकल्प से 'इ' और 'ए होते हैं। जैसे-नूपुरम् निउरं, नेउरं और पक्ष में नूउरं। प्रथम रूप में 'ऊ' की 'इ'; द्वितीय रूप में 'ऊ' का 'ए'; और तृतीय रूप में विकल्प-पक्ष के कारण से 'ऊ' का "ऊ' ही रहा।
'नूपुरम् संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'निउर','नेउर' और 'नूउर' होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१२३ से आदि दीर्घ 'ऊ' का विकल्प से 'इ' और 'ए'; और पक्ष में 'ऊ'; १-१७७ से 'प्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुसंकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से 'निउर', 'नेउर' और 'नूउर' रूप सिद्ध हो जाते हैं।। १–१२३।।
ओत्कूष्माण्डी-तूणीर-कूर्पर-स्थूल-ताम्बूल-गुडूची-मूल्ये।।१-१२४।। एषु ऊत ओद् भवति।। कोहण्डी कोहली। तोणीरं कोप्परं। थोरं। तम्बोलं। गलोई मोल्लं।।
अर्थः-कूष्माण्डी, तूणीर, कूर्पर, स्थूल, ताम्बूल, गुडुची और मूल्य में रहे हुए 'ऊ' का 'ओ' होता हैं जैसेकूष्माण्डी-कोहण्डी और कोहली। तूणीरम्=तोणीरं। कूर्परम् कोप्परं। स्थूलम्-थोरं। ताम्बूलम् तम्बोल। गुडूची-गलोई। मूल्यं मोल्लं॥
कूष्माण्डी संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'कोहण्डी' और 'कोहली' होते है। इनमें सूत्र-संख्या १-१२४ से 'ऊ' का 'ओ'; २-७३ से 'ष्मा' का 'ह'; और इसी सूत्र से 'ण्ड' का विकल्प से 'ल'; होकर क्रम से 'कोहण्डी' और 'कोहली' रूप सिद्ध हो जाते हैं। - 'तूणीरम्' संस्कृत शब्द हैं इसका प्राकृत रूप 'तोणीरं' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२४ से 'ऊ' का 'ओ'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'तोणीरं रूप सिद्ध हो जाता है। _ 'कूर्परम्' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'कोप्पर होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२४ से 'ऊ' का 'ओ'; २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से 'प' का द्वित्व 'प्प'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'कोप्परं रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'स्थूलं' संस्कृत विशेषण है; इसका प्राकृत रूप 'थोरं' होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७७ से 'स' का लोप; १-१२४ से 'ऊ' का 'ओ'; १-२५ से 'ल' का 'र'; ३-२५५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति, और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'थोरं रूप सिद्ध हो जाता है। ___ 'ताम्बूलं' संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'तम्बोल' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से आदि 'आ' का 'अ'; १-१२४ से 'ऊ' का 'ओ'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्तः 'म्' का अनुस्वार होकर 'तम्बोल' रूप सिद्ध हो जाता है।
गलोई शब्द की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१०७ में की गई है।
'मूल्यं संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप 'मोल्लं' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२४ से 'ऊ' का 'ओ' ; २-७८ से"य' का लोप; २-८९ से 'ल' का द्वित्व 'ल्ल'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन नपुंसकलिंग में सि'
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