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________________ उपदेशसंग्रह-६ ४६९ आश्रममें पवित्र सनातन जैन मार्गको आँच न आये। आश्रममें रहनेवालोंको ब्रह्मचर्यका पालन अवश्य करना चाहिये। स्त्रियोंको अकेले नहीं रहना चाहिये । व्यवहारशुद्धि बराबर रखनी चाहिये। कृपालुदेव श्रीमद् राजचंद्रकी सेवा-पूजा करें। हमको तो कृपालुदेव श्रीमद् राजचंद्र प्रत्यक्ष ही हैं। उन श्री कृपालुदेवके सिवाय हमें कुछ भी नहीं हैं। रोम रोममें वे ही हैं। मात्र उनकी ओर ही सबको ले जा रहे हैं। इस आश्रमके प्रारंभमें हमारी सेवापूजा हुई, पुष्प भी चढ़ाये गये। उस समय भी हमें वह विष समान ही लगता था। परमार्थ हेतुसे उसे चलने दिया गया। समय आनेपर अवसरका लाभ लेनेका ध्यानमें था। संघ हमारे माँ-बाप हैं। अतः उनके समक्ष आज यह प्रकट कर हम अब मुक्त होते हैं। कृपालुदेव श्रीमद् राजचंद्रके वचनानुसार इस आश्रममें एक मात्र सनातन जैनधर्मकी पुष्टि होनी चाहिये। कृपालुदेवकी आज्ञासे सदाचरणपूर्वक व्यवहार न करना हो तो फिर आप स्वच्छंदसे आश्रममें चाहे जैसा व्यवहार कर सकते हैं। आश्रम ट्रस्टियोंको सौंपकर हम तो मुक्त हो गये हैं। सनातन जैनमार्गकी पुष्टिके लिये ट्रस्टियोंको निर्भयतापूर्वक व्यवहार करना चाहिये। किसीके भी असत् व्यवहारको चलने नहीं देना चाहिये । साधुको भी स्त्रीके परिचयमें देखा जाय तो आश्रममें स्थान नहीं देना चाहिये। __ संघको हमारे दोष भी हमें बताने चाहिये । युवावस्थामें हमने यथाशक्य उत्कृष्ट त्यागका सेवन किया है। वृद्धावस्थाके कारण कुछ अपवाद स्वीकार किये हैं, पर उसके लिये भी हमें पश्चात्ताप यह व्यवस्था कर अब हम एकांतका सेवन करना चाहते हैं। श्री संघसे विनति है कि हमारी आज्ञाके बिना कोई हमारे समागममें न आये। आश्रममें किस प्रकारकी प्रवृत्ति चलती है, इसका पता हमें जहाँ हम होंगे वहाँ चल जायेगा। आने जैसा लगेगा तो वैसी भावना रहेगी। फाल्गुन सुदी पूर्णिमा, सं. १९८६ आज किसी आंतरिक स्फुरणासे, पुराणपुरुषकी कृपासे, हमने आपको अपना अंतःकरण खोलकर बात करनेके लिये बुलाया है। वह बात संसारकी, स्वार्थकी या व्यापारकी नहीं है, पर मात्र आत्महितकी, परमार्थकी है। इस देहका क्या भरोसा! बुढ़ापा आ गया है इसलिये हम अंतःकरण खोलकर यह स्पष्ट बात आपको बता रहे हैं। अभी तक यह बात हमने किसीसे नहीं कही है। ये शब्द तो पहले भी कहे गये होंगे परंतु जिस-तिस अवसरकी प्रेरणाशक्ति और उसका योगबल तो नया है। आपको कहने योग्य समझकर कहनेकी प्रेरणा होनेसे चार-पाँच दिनसे आपको बुलानेका विचार हो रहा था। आज अवकाश मिलने पर बुलाया है। हम जो कह रहे हैं उसे बराबर लक्ष्यमें रखियेगा। दिन-प्रतिदिन, प्रतिसमय ध्यानमें रखियेगा। यही करना है। यह सब आज समझमें न आये, फिर भी श्रद्धासे मान्य रखना है। वह भविष्यमें अवसर आने पर समझमें आयेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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