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________________ उपदेशसंग्रह-५ ४६१ ता. २०-२-३६ एक आत्मा है, शेष सब नाशवान है। संबंध हैं-आते हैं, जाते हैं, सुख है, दुःख है । पर एक आत्मा। आत्माके बिना कौन देख सकता है? जो सबसे पहले है उसे छोड़ दिया है। यह भूल है। एक आत्मा ही है। इस देहको मानना है क्या? यह मनुष्यभव है तो काम बन जायगा। पशु, पक्षी, कौवे, कुत्ते कुछ समझेंगे? ___ढूँढिया या तपागच्छ यह कोई धर्म नहीं है। धर्म तो एक आत्माका है। यह तो स्त्री है, पुरुष है, वृद्ध है, युवान है यह सब मिथ्या है। एक आत्मा है। कोई भेदी पुरुष मिल जाय तो मनुष्यभव सार्थक हो जाय । अनंत भव बीत गये हैं, पर सिद्धि नहीं हुई। सब प्रमादमें जा रहा है। सब उपचार करते हैं, रोग मिटाते हैं, स्वस्थ भी होते हैं, शिथिल भी होते हैं। अंतमें सब मर भी गये। माता-पिता, स्त्री-बच्चे मर गये, आत्मा नहीं मरा । इसका पता नहीं है। इसका पता करना है। हजार रुपये मिलते हों तो दौड़ता जाता है, वहाँ समय बिगाड़ता है। एक आत्माकी ही पहचान करनी है। विश्वास नहीं है, प्रतीति नहीं है। यह तो मैं जानता हूँ, मुझे पता है, यों मानता है। बीमार हो जाय तो घरमें पड़ा रहता है, पर आत्माके कामके लिये एक घड़ी भी नहीं रुक सकता। दृढ़ताकी आवश्यकता है। उसकी चिंता नहीं की। निश्चय करनेसे काम बन जाता है। आत्माको नहीं संभाला है। स्थान-स्थान पर यह सब तो झूठा लगता है। आत्माके लिये करें । 'यह मेरी स्त्री', 'यह मेरी माँ'-सब अंधेरा! अंतमें एक आत्मा है, वही कामका है। कर्मके कारण यह 'मेरा-तेरा' होता है । समय प्रमादमें बीत रहा है, भ्रममें बीत रहा है। पता नहीं है, पर कुछ है अवश्य । एकका नहीं, सबका यही हाल है। सचेत होने जैसा है। जो यह मार्ग ढूँढेगा उसका काम हो जायेगा। कानमें दो बोल पड़े यह अच्छा हुआ और वह उपयोगी है। जाग्रत हो जायेंगे तो कामका । बीमार हो, काम हो तो समय मिलता है, पर एक आत्माके लिये कुछ नहीं। कोई चीर डाले तो भी एक आत्माका ही काम करना चाहिये । विवाहके लिये, अच्छा दिखानेके लिये समय मिल जाता है। ब्याह कराने जाना हो तो नौकरीसे छुट्टी लेकर भी जाते हैं, पर आत्माके लिये समय नहीं मिलता। उसके लिये थोड़ी भी चिंता नहीं है। यह बहुत समझने जैसी बात है। ता. ११-३-३६ आत्माके लिये तो करें ही। आत्माका ही व्यापार-सत्संग करें। इस संसारके समान मिथ्या कोई नहीं है। सारा लोक त्रिविध तापसे जल रहा है। सुख कहाँ है? सब तूफान है, महादुःखरूप है। हमें तो अन्य कुछ कहना नहीं है। आत्माकी अधिक संभाल रखें। आत्माका ध्यान, समागम, परिचय करें। 'छह पद'का पत्र, बीस दोहें आदिका पाठ करें। कोई साथमें नहीं आयेगा। मेरा आत्मा ही कामका, वह अकेला ही कामका है। आत्माके लिये किया वह कल्याणके लिये किया, और वही सफल है। अतः आत्माका सत्संग करना योग्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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