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उपदेशसंग्रह-५ पैसा, न तेरा घर । तू तो मेहमान है। सुख दुःख भोगकर चला जा।
१"सुखदुःख मनमां न आणिये, घट साथे रे घडियां;
टाळ्यां ते कोईनां नव टळे, रघुनाथनां जडियां." सारा जगत कर्माधीन है। दुःख, महाभयंकर दुःख है। लक्ष्य रखें। ‘आत्मसिद्धि' क्या ऐसी वैसी है? एक एक गाथा पर विचार करे तो काम बन जाय, इसका भान भी नहीं है । मैंने कंठस्थ कर ली है, मुझे आती है, ज्ञात है, यों सामान्य कर डालता है। सामान्य कर देता है यही दुःख और व्याधि है।
___ आत्माका स्मरण किये जा। भगवानने कहा है कि सुख दुःख आयेंगे ही, यह सत्य है। कियेका फल है। कहा जाय ऐसा नहीं है। "जिसे आत्माकी गवेषणा करनी हो उसे यमनियमादि सर्व साधनोंके आग्रहको गौण कर सत्संगकी गवेषणा करनी चाहिये और उपासना करनी चाहिये । जिसे सत्संगकी उपासना करनी हो उसे संसारकी उपासना करनेका आत्मभाव सर्वथा त्यागना चाहिये।" __ चाहे जितने रुपये खर्च करने पर भी कोई तुझे इतनी शिक्षा देगा? स्थिरता धारण कर । बहुत भूल है। व्यर्थ बीत रहा है (जीवन)। एक सत्संगकी आज्ञाकी उपासना करनी चाहिये।
"प्रारब्ध पहले बन्या, पीछे बना शरीर;
तुलसी अचरज ओ बड़ी, मन न बांधे धीर." अतः सचेत हो जा। यह बात कहीं नहीं मिलेगी। मृत्यु अवश्य आयेगी। फिर भी यह जीव बारंबार भूल जाता है। यह बात कोई नहीं सुनेंगे क्या? तौबा! तौबा! सारा लोक त्रिविध तापसे जल रहा है। ‘पद है, पैसा है, घर है, मकान है, गाड़ी है, घोड़ा है-सब सुख है, मुझे क्या कमी है?' ऐसा मानकर मग्न रहता है। किन्तु पराधीन है। राजा और रंक सबकी मृत्यु है । क्षमा करना, समता रखना और भगवानका नाम नहीं छोड़ना। जो आया है वह जायेगा। श्रद्धा, लक्ष्य और प्रतीति हो तो वह चिंतामणि है। सामान्य न बनायें। मैं तो जानता हूँ, ऐसा कहता है। कर्म फूटा तेरा! बहुत भूल हो रही है! चेतने जैसा है। यह जीवनडोरी है वह काम आयेगी। संभाल और समझ रखे तो यह अनंतगुनी कमाई है। बीस दोहोंका चंडीपाठके समान नित्य पाठ करे तो यह चिंतामणि है। यहाँ तो धर्म है और वही कर्तव्य है। जब तक शरीर है तब तक बोलूँगा । कठिनतासे बोल रहा हूँ। शक्ति नहीं है, फिर भी परमार्थ समझकर बोल रहा हूँ।
हम ढूंढिया थे, बड़े साधु थे, किन्तु परमकृपालुदेवके समागमसे समझ गये कि एक आत्मा ही मेरा है, अन्य सब मेहमान हैं। कल सब चले जायेंगे। अतः यही करना है।
"आत्मज्ञान त्यां मुनिपणुं, ते साचा गुरु होय;
बाकी कुळगुरु कल्पना, आत्मार्थी नहि जोय." आत्मज्ञान ही सत् है। किसीको दिखानेके लिये कुछ नहीं कहना है। सद्गुरुकी प्राप्तिसे कुछ
१. सुख दुःखको मनमें नहीं लाना चाहिये, क्योंकि उनका तो शरीरके साथ निर्माण हो चुका है। (रघुनाथ राम=प्रारब्ध) कर्मानुसार उनकी प्राप्ति होनी ही है, वे किसीके टालनेसे टल नहीं सकते।
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