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उपदेशामृत
अषाढ सुदी ४, बुध, १९९१
आत्मा असंग है, अप्रतिबंध है, अजर है, अमर है, अविनाशी है। ऐसे शरीर तो अनेक धारण किये, उन सबका नाश हुआ। अतः देह पर मोह न करें। एक आत्मा पर लक्ष्य रखें। यह महामंत्र है ।
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ता. २३-१-३६ सत्संगका माहात्म्य अथाह है । सत्संगमें क्या होता है ? आत्माकी श्रद्धा होती है, परिणमन 1 होता है ।
ता. ३-२-३६
मनुष्यभव दुर्लभ है । मैत्री, प्रमोद, कारुण्य, मध्यस्थ भावना करनी चाहिये । बड़ी से बड़ी बात सत्संग है। सत्संगमें बोध अमृतके समान है । वहाँ समागममें कोई वचन सुननेमें आये तो सहज ही पुण्यबंध होता है । ज्ञानीपुरुषकी वाणी सुनायी दे और क्वचित् न भी सुनायी दे तो भी पुण्यबंध होता है । मेहमान है, मनुष्यभव दुर्लभ है । “हे जीवों! तुम समझो, सम्यक् प्रकारसे समझो, मनुष्यभव मिलना बहुत दुर्लभ है और चारों गतियोंमें भय है, ऐसा जानो । अज्ञानसे सद्विवेक पाना दुर्लभ है, ऐसा समझो । सारा लोक एकांत दुःखसे जल रहा है, ऐसा जानो और 'सब जीव' अपने अपने कर्मोंके कारण विपर्यासताका अनुभव करते हैं, इसका विचार करो ।" यह मेरा पुत्र, यह मेरी स्त्री, यह मेरा घर - ये सब बंधन हैं ।
"सहु साधन बंधन थयां, रह्यो न कोई उपाय; सत्साधन समज्यो नहीं, त्यां बंधन शुं जाय ?"
कुछ नहीं तो 'बीस दोहे' ही नित्य चंडीपाठकी तरह बोले तो भी काम बन जायेगा । संग बलवान है ।
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सारा लोक एकांत दुःखसे जल रहा है । जन्म जरा मरण जैसा कोई बुरा नहीं । मार्ग में जैसे लोग इकट्ठे हो जाते हैं, वैसे ही यह एक मेला है । इसमें प्रसन्न क्यों होता है ? सुख और दुःख क्यों मानता है ? यह तेरा धर्म नहीं है । अनंत भव बीत गये तो भी तूने आत्माको नहीं पहचाना, तो अब कब पहचानेगा? अतः सत्संग और त्याग - वैराग्य कर । पहले सत्संग बहुत कठिन लगेगा, पर अंतमें यही सुख देगा । संसारसे कर्मबंध होता है, वैराग्यसे हित होता है । यह अवसर आया है । सब जीव अपने कर्मोंसे विपर्यास भोगते हैं। मनुष्यभव दुर्लभ है । चारों गति अति दुःखदायी हैं। जन्म, जरा, मरण ये सब दुःखदायी हैं। 'मैं' और 'मेरा' सब बंधन है। मारा जायेगा। यह तेरा नहीं है । यह योग कुछ ऐसा वैसा है ? अब कब देखेगा ? जिसे बंधनमुक्त होना है उसे आत्माकी गवेषणा करनी चाहिये । बनिया है, ब्राह्मण है, पटेल है - यह कुछ नहीं ।
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"ज्यां लगी आतमा तत्त्व चीन्यो नहीं;
त्यां लगी साधना सर्व जूठी "
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कुछ नहीं । मनको घूमता, भटकता हुआ रखता है । पटक सिर फोड़ दे पत्थरसे। जैसे कोल्हूका बैल घूमता रहता है वैसे परिभ्रमण करता है । तेरा कोई नहीं है । न तेरा पुत्र है, न तेरा
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