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उपदेशसंग्रह-५
४४१ आत्माको अन्य कुछ नहीं माने। अन्यत्र परिणत हो गया है, आत्मामें परिणत होना है। अनंतानुबंधी चले जाने पर पता लगता है, सब मंद हो जाता है। करता सब है पर उसमें रस नहीं आता। भावना करनी है। लोग श्रावण मासमें कथा पढ़वाते हैं, पर यहाँ तो नित्य ही श्रावण मास है। आत्मा कब नहीं है? इसीकी बात करनी है।
मुमुक्षु-खंभातमें सुना था कि आपकी संगति नहीं करनी चाहिये।
प्रभुश्री-बात सच है । हम तो स्पष्ट कह देते हैं। सच्चाई ग्रहण हो जाय तो फिर बदल नहीं सकती। ये सब अब जान गये हैं कि यहाँ आत्माकी ही बात है, तभी तो बैठे हैं। किन्तु जब तक सुना न हो तब तक भागदौड़ करते हैं, ऐसा ही सबका होता है। बात तो एक ही है : 'आत्मा' । पर इतना कहने मात्रसे रस नहीं आता, इसलिये विस्तारसे बात करनी पड़ती है जिससे रस आता है। परदा पड़ा हो और अंदर सब जाते आते हों तो कुछ रस नहीं आता। परदा उठने पर जब सब अभिनय करते हैं तब रस आता है, पर आँख चाहिये। आँख ही न हो तो क्या दिखायी देगा? एक अंधा था उसका मन नाटक देखनेका हुआ। सबसे कहता कि मुझे भी ले चलो। सब कहते कि तुम क्या देखोगे? अंधेने कहा-तुम धक्का मारना, तब मैं हँसूंगा। नाटक हुआ, सब हँसे, पर धक्का नहीं लगनेसे वह हँसा नहीं। फिर एक व्यक्तिने धक्का मारा तब वह अकेला हँसने लगा। ऐसा न हो इसलिये आँख चाहिये।
ता. २९-८-३४ देवगतिमें मानसिक दुःख बहुत हैं, ऐसा विचार समकितीको ही होता है। समकिती आत्मा पर लक्ष्य रखता है। आत्मा है, ऐसा अवश्य मानो। आत्मा है?
मुमुक्षु-हाँ, ज्ञानीने देखा है।
प्रभुश्री-ज्ञानीने तो आत्मा देखा है, पर यह प्रतीति आती है कि आत्मा न हो तो यह सुने कौन? उसे भूलना नहीं है। मिथ्यादृष्टि देहको ही देखता है। उसे भूल जाओ। आत्माकी पहचान रखो।
ता. ३०-८-३४ सम्यग्दृष्टि आत्माके सिवाय अन्य किसीको अपना नहीं मानता। गजसुकुमारने क्या किया? धैर्य रखा । गाँठसे बाँध लें-धैर्य, क्षमा, समता । वेदनाके समय सोचें कि मेरा है वह जायेगा नहीं और जो जा रहा है वह धूप-छायाके समान है, पर उसे मैं अपना मानूँगा ही नहीं। गजसुकुमारको ज्ञानी मिले थे। उन्होंने जो मान्य करवाया था उसे ही अपना माना, अन्य सबको पर जाना। सभी जानेवाले हैं-पर्यायको अपना कैसे मानूँ? ____ ज्ञानीने क्या किया है? राग, द्वेष और मोहको निकाल दिया है। इस जीवका कौन बुरा करता है ? पूजाकी इच्छा, पुद्गलकी, परकी इच्छा क्या रखनी? अब मोह किससे करें? मोह किया कि फैंस गये । नारकीको दुःख भोगते समय कौन बचाने आता है? कोई किसीका नहीं है।
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