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उपदेशामृत विश्वास हो तभी आज्ञाका पालन होता है। बड़ा गाँव हो तो भी किस कामका? किन्तु गाँवमें किसी एकसे पहचान हो तो खाना-पीना मिल सकता है। वनमें मार्ग बतानेवाला भील साथमें हो तो वह लुट नहीं सकता। इसी प्रकार सत्पुरुषमें विश्वास हो तो धर्मके नाम पर ठगा नहीं जा सकता। उपयोग तो है ही। जहाँ उपयोग है वहाँ आत्मा है। श्रद्धा हो तो इधरका इधर हो जाता है, पश्चिमके बदले पूर्व दिखायी देता है। इसी प्रकार विश्वास हो तो जड़के स्थान पर आत्मा दिखायी दे। यह चमत्कार है, पर श्रद्धा, विश्वास नहीं है।
ता. ९-६-३४ गाड़ी अँकुडेसे इंजनसे जोड़ी जाती है, बड़े जहाजसे जुड़कर छोटी नौका चलती है; त्यों सद्गुरुके अवलंबनसे ही मोक्षमार्ग पर चला जा सकता है। अवलंबन ही अँकुडा है। सद्गुरु क्या देते हैं ? समझ। समझ बदलती है, भान बदलता है यही बड़ीसे बड़ी कमाई है । बदलता है, पर उसका पता नहीं लगता। अतः विश्वास चाहिये । विश्वास, श्रद्धा, प्रतीति, रुचि यह क्रम है। ___ बच्चा छोटा हो और पिताका कहना माने तो सब सरल हो जाता है, ऐसे ही सद्गुरुके वचन मान्य रखनेमें लाभ है। आत्माकी बात तो बहुत करते हैं, पर सद्गुरु तो दृढ़ता करवाते हैं । अन्य प्रकारसे दृढ़ता नहीं हो पाती।
ईश्वर कौन? आत्मा। उससे बड़ा कोई ईश्वर नहीं। भीत पर घोड़ेका आकार बनाया हो तो घोड़ा लगने लगता है, ऐसे ही 'सहजात्मस्वरूप'का स्मरण करनेसे कालक्रमसे तद्रूप बना जा सकता है। वैसे भाव होते ही अन्य सबमेंसे रुचि हट जाती है। ____ कुछ भी बात सुनने पर जैसे 'हाँ, हाँ' कर देते हैं वैसे ही सत्संगमें आत्माकी बात सुनकर उसमें परिणमन होता है। अनेक प्रसंगोंमें ऐसा भी कह देते हैं कि 'अब नहीं भूलूँगा, कभी नहीं भूलूँगा,' ऐसा ही आत्माकी बातके संबंधमें भी होना चाहिये। श्रेणिक राजाको अनाथी मुनिका उपदेश सुनकर ऐसे ही समकित हुआ था। श्रद्धा, सत् श्रद्धा, आत्माकी श्रद्धा करनी चाहिये । यही करना है।
ज्ञानी मिले, उनके वचन भी सुने, सब किया, फिर भी कोरा रह गया, कारण? श्रद्धाकी कमी । ‘आत्मसिद्धि'में सब है। किसीको कुछ पूछने जाना नहीं पड़ेगा।
शुभ, अशुभ और शुद्ध ये तीन प्रकारके भाव हैं । घरमें घुसने वाले कुत्तोंको जैसे भगा देते हैं वैसे ही अशुभ भावोंको निकाल देना चाहिये। अच्छे लोगोंको जैसे आने देते हैं वैसे ही शुभ भावोंको आने देना चाहिये । परंतु यदि घरको बंध कर देंगे तो कोई नहीं आयेगा, वैसे ही शुभ-अशुभ भाव आने बंद होंगे तब शुद्ध भाव होगा। घर कहीं चला नहीं जाता। सूरज है, बादल आते जाते हैं। वैसे ही सूरज शुद्धभाव है, बादल शुभ-अशुभ भाव हैं। आत्माका वीर्य जाग्रत होता है तो बादल चले जाते हैं। बादल हों तब भी सूरज कहीं चला नहीं जाता।
ता. २७-८-३४ __ सब विनाशी है। सब ममत्व कर करके चले गये हैं। अतः अब चेत जाना चाहिये। आत्माकी श्रद्धा कर लें। वज्रकी भीतके समान अडिग श्रद्धा करें। अन्य(पर)को आत्मा न माने और
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