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उपदेशसंग्रह-५
४३५ चाहिये। एककी श्रद्धा कर लो। डाका पड़नेका डर हो तब जैसे कोई रत्नको भूगर्भ में छिपाकर रखता है, वैसे ही जब चारों ओर भय है तब क्या करेंगे? क्या मार्ग निकालेंगे? कहाँ जायेंगे? श्रद्धा । सब वचन समान नहीं होते। कोई कहे कि क्रोध नहीं करना और ज्ञानी कहे कि क्रोध नहीं करना तो उसमें आकाश-पातालका अंतर है। .
ता. २६-२-३४ __ भीख माँगनेका समय आ जाय तो भी घबराना नहीं। आत्मा कहाँ भिखारी है? यह व्यक्ति पहले छोटा था, युवान हुआ, आज वृद्ध है तो इससे क्या वह बदल गया? वह तो जो है वही है, शरीर वृद्ध हुआ; ऐसे ही सब बदलता है तो इससे क्या आत्मा भी बदल जाता है?
(दवाई पीते पीते) इस जीवको यह भोगना पड़ता है। क्या तुम्हें यह दवाई पीनी पड़ती है? सभीको अपने अपने बँधे हुए कर्म भोगने पड़ते हैं। प्रत्येकके कर्म भिन्न भिन्न हैं। इसीलिये कहा है कि उसके सामने नहीं देखें, समकित कर लें। समकित अर्थात् आत्मा है। अन्य सब भूल जायें । क्षमा धारण करें। आया है वह तो जा रहा है।
व्यासजीने शुकदेवजीको उपदेश दिया। शुकदेवजीने कहा-यह तो मैं जानता हूँ। तब व्यासजीने कहा, "अधिक जानना हो तो जनक विदेहीके पास जाओ।" अतः वे वहाँ गये । जनकने आठ दिन तक खूब आदर-सत्कार कराया, पर मिले नहीं। फिर मिले, पूजा कर उपदेश दिया, ज्ञान कराया। शुकदेवजीने कहा, “यह तो व्यासजीने मुझे कहा था।" तब जनकने कहा, "मैंने व्यासजीसे जो जाना है वही तुम्हें बताया है। अब आप स्वयं अपने गुरु हुए।"
पूजा किसकी की थी? आत्माकी । ज्ञानी सबके पाँवों पड़ते हैं। क्या वे देहके पाँवों पड़ते हैं? समझनेकी बात है। पूरी पुस्तक पढ़ ले पर गुरुगम न हो तो कुछ भी समझमें नहीं आयेगा। शुकदेवजीको वैराग्य था, जिससे तुरत समझमें आ गया। सब ग्रहण किससे होता है? मनसे । मनसे ही बँधता है और मनसे ही मुक्त होता है। हमें सब छुड़वाना है और आत्माकी मान्यता करवानी है।
ता. २७-२-३४ लौकिक दृष्टिसे यह सब मायाका स्वरूप दिखायी देता है। यह तो एक भवका संबंध है। ऐसे कितने ही भव बीत गये और बीत जायेंगे, यह सब सत्य है क्या? सब इन्द्रजाल है। अतः आत्माको पहचानें । लोगोंमें कहा जाता है कि मेरी अमुक सेठसे पहचान है, जब चाहिये तब उससे पैसे ला सकता हूँ। ऐसे ही आत्माकी पहचान हो गयी हो तो फिर सब मिल सकता है।
ता. २८-२-३४ प्रत्यक्ष दिखायी देता है कि शरीर हड्डी, माँस और चमड़ेका है। इसमें कुछ भी साररूप नहीं है, फिर भी विकल्प करके 'मेरा' मानता है। यह शरीर तीस बरसका था, आज वृद्ध हो गया है। क्या
आत्मा वृद्ध हो गया है? इसी प्रकार हम सब यहाँ मेहमान हैं। ऋण संबंधसे आकर मिल गये हैं। किसीने निमंत्रण नहीं दिया है-आप मेरे माता-पिता बनना या पुत्र बनना ऐसा किसीने निमंत्रण नहीं
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