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उपदेशामृत फिर निज देशको कोई छोड़ेगा? यह तो बाहर भटक रहा है। अपने देशको छोड़कर बाहर भटक रहा है, वहाँ बंधन हो रहा है।
आबू, ता.१७-६-३५ मुख्यतः आत्माके तीन प्रकार हैं-बाह्यात्मा, अंतरात्मा, परमात्मा। इनमेंसे परमात्मा समझने योग्य है।
'बिना नयन पावे नहीं, बिना नयनकी बात.' बाह्य वस्तुको देखनेके लिये जैसे चक्षु चाहिये, वैसे ही ज्ञान चक्षुसे आंतरिक वस्तु देखी जा सकती है। ज्ञानचक्षुके बिना आत्मा नहीं देखा जा सकता। आत्मा अरूपी है, वह रूपी तो है नहीं। जैसे अंगारोंको चिमटेसे पकड़ा जा सकता है वैसे आत्मा चर्मचक्षुसे दिखायी नहीं देता। तो इसके लिये चाहिये क्या? दिव्यचक्षु । वह दिव्य चक्षु ज्ञानीके पास है। यह चक्षु लगाये तब आत्मा दिखायी देता है। योग्यता हो तो ज्ञानी मार्गमें जाते हुएको भी बुलाकर दे देते हैं। योग्यता क्या है? ___ योग्यता अर्थात् भाव, प्रेम । उन्हीं पर भाव, प्रेम आवे तो काम बन जाय । यह पूर्वकृत और पुरुषार्थसे होता है। कारणके बिना कार्य नहीं होता।
श्री आश्रम, अगास ता.१३-७-३५ स्थान स्थान पर आत्मा देखो। मूर्ख हो वह अन्य देखेगा। काला-गोरा देखने गये तो मारे जाओगे ऐसा समझ लो। यह मेरा साक्षात् आत्मा, यह भी मेरा साक्षात् आत्मा । तू ही, तू ही, एक मात्र यही। आत्मा पर प्रेम, प्रीति, भक्ति नहीं हुई है, वह करनी है। उसीके लिये यह अवसर आया है, अतः चेत जाओ।
इतना निश्चय रखो कि यह मनुष्यभव तो सफल हो गया, कारण, अपूर्व योग मिला है। अब श्रद्धा एक पर ही रखो। जहाँ तहाँ श्रद्धा करोगे तो मारे जाओगे। स्वरूपप्राप्त एक सत्पुरुष परमकृपालु पर श्रद्धा दृढ़ होगी तो जप, तप, क्रियामात्र सफल हो गयी, मनुष्यभव सफल हो गया, दीपक प्रकाशित हुआ, समकित हुआ समझ लो ।
तेरी देरीसे देर है। जिसमें एक एक गाथा चमत्कारिक है ऐसी 'आत्मसिद्धि' अपूर्व है! 'छूटे देहाध्यास तो नहि कर्ता तुं कर्म ।' विचार कहाँ किया है? “अनादि स्वप्नदशाके कारण उत्पन्न जीवके अहंभाव, ममत्वभाव निवृत्त होनेके लिये ज्ञानीपुरुषोंने यह छह पदोंका उपदेश दिया है।" विचार कहाँ किया है! विचार करे तो अभी प्राप्त हो जाये । 'समयं गोयम मा पाए' समय मात्रका प्रमाद कर्तव्य नहीं है।
ता. १४-८-३५, श्रावण सुदी पूर्णिमा आज यहाँ आये हैं तो कमाईके ढेर लगते हैं। दर्शन होंगे, आत्महितके लिये सत्संगमें, आत्माकी बात सुननेको मिलेगी, ऐसी भावनासे समागमके लिये यहाँ आनेके भाव किये तो पग-पग पर यज्ञका फल कहा है। तीर्थयात्रा बहुत की, पर सच्चा देव कौन है? आत्मा। जिसने उसे जाना है, ऐसे सत्पुरुषकी वाणी सुनते ही कोटिकर्म क्षय हो जाते हैं, पुण्यके ढेर बँध जाते हैं।
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