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उपदेशसंग्रह - ३
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सुरत, ता. १२-६-३४
यहाँ आये हैं तो बहुत लाभ होगा। अभी पहचान नहीं हुई है। पहचान कर लेनी चाहिये । जड़-चेतनकी पहचान होने पर समकित कहा जाता है। नौ ही तत्त्व जड़-चेतनमें समा जाते हैं ।
श्री ज्ञानीने जड़-चेतनकी व्याख्या यों की है
" जड भावे जड परिणमे, चेतन चेतन भाव" यह पद कंठस्थ कर लें। इसमें जड़-चेतनकी पहचान करायी है। जड़ पुद्गल है। उसके परमाणु हैं, उसके पर्याय हैं । उन्हें ज्ञानी जानते हैं । जड़ सुख-दुःखको नहीं जानता । द्रव्य, गुण, पर्याय जड़के भी हैं । कर्म जड़ है ।
आत्माको जीव कहते हैं, चैतन्य शक्ति कहते हैं। जो जानता है, देखता है वह ज्ञानस्वरूप आत्मा है । द्रव्य, गुण, पर्याय आत्माके भी हैं। उसे जानने पर भेदज्ञान होता है। जड़को जड़ समझें और चेतनको चेतन यही भेदज्ञान है ।
यह बात कंठस्थ कर लें । लक्ष्यमें रखेंगे तो जड़चेतनकी पहचान होगी ।
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सुरत, ता. १२-६-३४
‘सहजात्मस्वरूप' यह महा चमत्कारिक मंत्र है । स्मरण करते, याद करते, बोलते, वृत्तिको उसीमें संलग्न कर देनेसे कोटिकर्म क्षय होते हैं, शुभ भाव होते हैं, शुभगति और मोक्षका कारण होता है । मृत्युके समय चित्तवृत्ति मंत्रस्मरणमें या उसे सुननेमें लगी रहे तो अच्छी गति प्राप्त होती है और जन्म मरणसे मुक्त होनेका वह समर्थ कारण होता है ।
वृत्ति ही वैरी है, शत्रु है, बुरा करनेवाली है। उसे रोकें । वृत्तिको रोककर स्मरणमें लगना ही तप है। यही धर्म है। सत्पुरुषार्थमें रहें ।
'आणाओ धम्मो, आणाओ तवो' ज्ञानीकी श्रद्धा कर उसकी आज्ञानुसार चलें ।
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कुगुरु इच्छा, वासना, तृष्णा सहित हैं । 'क्या इच्छत ? खोवत सबे, है इच्छा दुःखमूल ।' वे स्वयं डूबते हैं, अन्यको भी डुबोते हैं । स्नानादिमें धर्म नहीं है । बिल्लीके बच्चे' घानीमें पिल गये थे, वैसा देखादेखी धर्म करने जाने पर अधर्म ही होता है ।
१. एक स्त्री प्रतिदिन प्रातः जल्दी उठकर नदीमें नहाने जाती । तब रास्तेमें भजन गाती गाती चलती थी । इतनेमें ही वह स्त्री भजन सबेरा हो गया है, अतः
एक दिन किसी बोहरेको आवश्यक काम होनेसे जल्दी उठनेकी इच्छा हुई। गाती हुई उसके घर के पाससे बहुत सबेरे निकली । यह सुनकर बोहरेने समझा शीघ्र उठा, उतावलीमें बिना देखे घानीमें तिल डाले और घानीको जोत दिया। घानीके खड़ेमें रातको बिल्ली ब्या गई थी इसका उसे पता नहीं था, इसलिये तिलके साथ बिल्लीके बच्चे पिल गये । सारा तेल खूनवाला लाल लाल हो गया, पर अंधेरेमें उसे कुछ पता नहीं चला, उसने तेल डिब्बेमें भर लिया ।
फिर प्रातः वह स्त्री नदीमें नहाकर वापस लौटी। आकर बाल सँवारने लगी तो बालमेंसे छोटी छोटी मछलियाँ निकलीं। यह देख उसे लगा कि आज तो बहुत पाप हुआ । चलकर किसी ज्ञानी गुरुको बताऊँ और प्रायश्चित्त लूँ । अतः किसी ज्ञानी गुरुके पास जाकर उसने सब बात बतायी।
मुनिने ज्ञानसे जाना कि इसे इतना ही पाप नहीं लगा है, पर और अधिक पाप लगा है। अतः उन्होंने उस
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