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उपदेशामृत
तब जीवका वीर्य मंद पड़ जाता है और दब जाता है, उस समय याद दिलानेवाला कोई हो तो विशेष लाभ होता है ।
प्रभुश्री - सौभाग्यभाईकी मृत्युके समय अंबालालभाई 'सहजात्मस्वरूप' सुनाते थे तब अपने ध्यान - उपयोगसे बाहर आकर सौभाग्यभाईको उसमें उपयोग जोड़ना पड़ा। अतः उस समय कुछ न बोलनेका उन्होंने कहा था । यों स्याद्वाद भी है ।
मुनि मो० - फिर भी अंबालाल विचक्षण थे । जब भी विशेष वेदनाके चिह्न दिखायी देते तब वे वापस स्मृति दिलाते रहते थे ।
ता. ७-१-२६ ['मोक्षमाला' शिक्षापाठ १०० 'मनोनिग्रहके विघ्न' का वाचन ]
मुमुक्षु-लक्ष्यकी बहुलताका क्या अर्थ है ?
प्रभुश्री - उपयोगका विभावसे छूटना, विशालता होना । उपयोगकी निर्मलताके लिये, वह भूला न जाय उसके लिये कुछ अधिक श्रवण आदिकी विशेष आवश्यकता नहीं है ।
['एक भी उत्तम नियमको सिद्ध नहीं करना' इस अठारहवें दोषके विवेचनके प्रसंग पर दृष्टांत ]
फेणावके छोटालाल कपूरचंद, अंबालालके मित्र थे । उन्हें 'बहु पुण्यकेरा पुंजथी' काव्यकी पहली गाथाकी दो पंक्तियाँ बार बार याद आती रहतीं । जब देखो तब वह उनकी जीभ पर ही होती। इनका उच्चारण किये बिना वे कभी दिखायी नहीं पड़े। इससे उनके मतिज्ञानमें निर्मलता होनेसे उन्हें अपनी मृत्युका कुछ पता लग गया । वे स्वयं बहुत पक्के थे। अंबालालभाईके कुटुंबका बहुतसा काम संभाल लेते, पर स्वार्थी इतने अधिक कि उनके चाहे जैसे काममें अन्यको स्वार्थकी गंध आये बिना न रहती । एक दिन शामको जहाँ सब भक्ति करते बैठते वहाँ आकर सबको नमस्कार करना शुरू कर दिया। सबको लगा कि बिना कारण वे ऐसा नहीं करेंगे । अतः अंबालालभाईने पूछ लिया- " छोटाभाई ! तुम आज ऐसा क्यों कर रहे हो ?” उन्होंने कहा - "मुझे आपसे आज वचन लेना है ।" "तुम्हें क्या चाहिये, बोलो?” “आप वचन दें कि दूँगा, तो माँगूँ ।" अंबालालभाईने हाँ कही तब उन्होंने उनसे और उनके पास बैठे नगीनदाससे अपनी मृत्युके समय उपस्थित रहकर मृत्यु सुधारने और स्मरण दिलानेकी माँग की। अंबालाल भाईने उसे स्वीकार किया। एकाध सप्ताह बाद छोटाभाईको प्लेगकी गाँठ निकल आई । अतः व्यावहारिक उपकारके कारण और वचनबद्ध होनेके कारण अंबालालभाई तीनों दिन उनके पास ही रहे और कुछ वाचन, भक्ति, बोध आदिसे उनका उपयोग उसमें ही जुड़ा रहे ऐसी प्रवृत्ति करते रहे । नगीनदास भी साथ रहे और उनका भतीजा पोपटभाई भी सेवामें रहा । इन तीनोंको छूतका रोग लग गया और तीनोंकी मृत्यु साथ ही हुई जिससे तीनोंका अग्निसंस्कार भी साथ ही किया गया ।
यह 'मोक्षमाला'का मनोनिग्रहका पाठ योग्यता देनेवाला है । इसमें कितनी सारी बातें कही गई है ! आलस्य, नींदका त्याग और संयम ये सब कर्तव्य हैं ।
मुमुक्षु - 'लक्ष्यकी बहुलता' में लक्ष्यका क्या मतलब है ?
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