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उपदेशामृत करे ऐसा उलटा मार्ग चलाना है? क्या मार्ग ऐसा है ? अनंत संसारमें भटकानेवाला ऐसा कारण कैसे सूझा? आपमेंसे भी कोई कुछ नहीं बोला? इस गद्दीपर पाँव कैसे रखा जाय? हम भी नमस्कार कर इसकी आज्ञा लेकर बैठते हैं, वहाँ ऐसा स्वच्छंद! बलपूर्वक दबाकर बैठा दिया इसमें उसका क्या दोष? पर किसीको यह नहीं सूझा कि क्या ऐसा करने देना चाहिये? ।
हम तो अब मुक्त होना चाहते हैं। जैसा है वैसा स्पष्ट कह देना चाहते हैं। जिसे मानना हो वह माने । बिचारे जीव कठिनाईसे आकर्षित होकर, पैसा खर्च कर, भक्तिभावके लिये आते हैं और इसमें ऐसी घटना घटित हो! हमें तो यह अच्छा नहीं लगता। मोहनीय कर्म है। प्रभु, अब पधारिये! मोहनीय कर्मने तो मार डाला है, बुरा किया है। अब सावधान होने योग्य है प्रभु!
ता.२३-६-२४ "धन्य ! ते नगरी, धन्य ! वेळा घडी;
मातपिता कुल वंश जिनेश्वर." [प्रातः स्तवनमें गाया गया इसमें क्या मर्म छिपा है? इस पंक्तिको लौकिकमें समझना है या अलौकिकमें? कुलवंश और संबंध क्या यह सब शरीरके बारेमें है? यों तो सारा संसार कर ही रहा है। यह तो समकितके साथ संबंध जोड़नेकी बात है। समकितसे जो गुण प्रकट होते हैं, उन्हें वंश कहा गया है। देखो, पीढ़ी ढूँढ़ निकाली! संसारीको गद्दी पर बैठाकर, संन्यासी भी उसके पाँव छूओ ऐसा स्वामीनारायण और वैष्णवों जैसा मार्ग चलाना है क्या? यह तो उनका योगबल है, वह इस स्थानका देव जागेगा तब बनेगा। ‘कर विचार तो पाम' ऐसा कहा है, क्या वह व्यर्थ है ? विचारके बिना, सद्विचारके बिना तो धर्म प्राप्त होता होगा? 'ऐसेको मिला तैसा, तैसेको मिला 'ताई, तीनोंने मिलकर तूती बजाई' यह बात तो लौकिक है, किन्तु परमार्थ समझनेके लिये कह रहा हूँ।
एक मोची था। वह घर छोड़कर घूमने निकला । चलते चलते काशी बनारस जा पहुँचा । वहाँ संस्कृत आदि पढ़कर पंडित बनकर लौटा। अब उसे जूते सिलाई करना कैसे अच्छा लगता? वह वापस दूर देश चला गया। एक छोटे ठाकुरके दरबार में जाकर श्लोक बोला और सभाको राजी कर दिया। ठाकुरने उसे पंडितका स्थान दे दिया। अतः वह वहीं रहने लगा। वहाँके राज्यपुरोहितकी कन्याके साथ उसका विवाह भी हो गया।
थोड़े दिन बाद उस मोचीके गाँवका एक व्यापारी उस देशमें माल लेकर आया, उसने उसे पहचान लिया। पर पंडित सावधान हो गया, अपनी जान-पहचानसे उस व्यापारीके चुंगीके पैसे माफ करवा दिये। फिर व्यापारीसे कहा कि यहाँ मेरे विषयमें किसीसे कुछ बात नहीं करोगे।
व्यापारी माल बेचकर अपने देश गया। वहाँ जाकर उस पंडितके पिता मोचीसे कहा कि, "तुम यहाँ जूते क्यों सी रहे हो? अपने लड़केके पास जाओ न? वह तो अमुक शहरमें राजाका बड़ा दरबारी है।" मोची वहाँ गया और अपने लड़केसे मिला । फिर लड़केने अपने पिताको समझाया कि यहाँ कोई कुछ जान न पाये, इस प्रकार आप यहाँ रहिये और आरामसे बैठकर खाइये । कुछ दिन तो ऐसा चला। कोई पूछे तो कहता कि यह तो हमारे गाँवका आदमी है, बच्चेको झुलानेको रखा है।
१. तेली
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