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________________ उपदेशसंग्रह-१ २४९ शादी आदि करता है और भागदौड़ कर माथापच्ची करता है! पानी बिलौनेसे मक्खन नहीं निकलेगा। महान दुःख है! किसे कहें ? बात कुछ कहने जैसी नहीं है। किसको कहें? कोई आत्मार्थी हो तो बात की जा सकती है। इस संबंधमें ही उत्सुकता रखनी चाहिये। रात दिन बीत रहे हैं पर सब व्यर्थ! कुछ गिनतीमें नहीं। सत्समागम हुआ होता तो गिनतीमें आता। पाँच-पंद्रह मिनिट सत्समागम हो तो भाग्य! और कहता है कि व्याख्यान सुनकर आया हूँ, पर फोड़ सिर । कहनेका कुछ और है वह समझमें नहीं आया। अंतरंगमें विचारकर श्रद्धा करनी है। धैर्य रखें तो काम होता है। यही शिक्षा है। इतनी तो श्रद्धा कर । एक हजार रुपये प्राप्त करे, पर पापकर नरक-तिर्यंचमें जाता है। किन्तु इससे तो देवगति होती है, अन्य नहीं। यहाँसे छूटनेकी देर है। खेलना है तो न खेलें क्या? जो करना है वह न करें क्या? मैं तो करूँगा, ऐसा कहता है, पर यही तो तेरी तकलीफ है! अवसर निकल गया तो बस हो गया! मघाकी वर्षा हो रही है, जिनके पास पात्र थे उन्होंने भर लिये हैं, वे ही पीयेंगे । मघाका जल मीठा होता है, उससे रोग नहीं होता, रोग मिट जाता है, ऐसा जीवने किया नहीं, वह करना चाहिये । यह इसके लिये, यह इसके लिये ऐसा नहीं; आत्माके लिये ही है। “चेत भरत, चेत!" यों कहते थे, ऐसे चेतना है । मात्र एक भाव । यहाँ पाँच मिनिट बैठे तो क्या रुपया पैसा दिया कि लो, ले जाओ इतना? मात्र कोई एक बात आत्माके हितकी ग्रहण हो गयी तो उसका काम हो गया। यही अच्छी बात हुई है। "हमें अमुक कार्य करना है, हाँ" यों इस जीवने हजारों अन्य काम किये हैं, पर यहाँ (सत्संग) करेगा तो देवगति प्राप्त होगी। अन्यथा फिर धूल फाँक, धूएँके मुटे भर! यह तो तेरा काम होगा, जन्म सफल होगा। 'मनुष्य देहका अवसर रे, फिर फिर नहीं मिले।" अतः चेत जा। जो वार करे उसकी तलवार, करे उसके बापका! तेरे भाव देख! तुझे आत्माकी दया आती हो तो कर ले । बार बार मौका नहीं मिलेगा। समझा? समझने योग्य है। सब बातें करते हैं-'बेहद अच्छी बात कही' पर 'तुंबीमें कंकड़ है।' यह बात की वह किसे समझमें आयेगी? बात चमत्कारी है! पर इसका इच्छुक कौन है? 'असंग-निर्मोह' ये बातें कभी सुनी नहीं है। मुँहसे बड़बड़ बोलता है, पर उससे कहीं कल्याण होता है? कल्याण तो समझनेसे, श्रद्धा करनेसे, भावना करनेसे होगा। भाव "भावे जिनवर पूजिये, भावे दीजे दान; भावे भावना भाविये, भावे केवळज्ञान." ऐसा किसी स्थान पर सुना है? किसीको सौ पाँचसौ रुपया देनेपर कोई देगा? यह कैसी वस्तु है? मनुष्यभवका यह अवसर बहुत महान है। बहुत दिनोंके बाद यह बात सुनी है, क्या यह किसीने गाली दी है? बात तो सच्ची कही है। श्रद्धा हो तो काम बन जाय । यहाँ पुण्यशाली जीव आते हैं, लक्ष्य रखते हैं, लक्ष्य छोड़ते भी नहीं। पुत्र-पुत्री हों तो भी क्या? न हों तो भी क्या? मात्र एक मनुष्यभव मिला तो इसे सत्समागममें व्यतीत करना है। यदि सत्संगकी पकड़ हो जाय तो देवगति प्राप्त होती है। ऐसी कुछ बात है? जिसने आत्माको जाना वह कर सकता है। आत्माका पता किसे है? "ज्यां लगी आतमा तत्त्व चिन्यो नहीं, त्यां लगी साधना सर्व जूठी।" "जिहाँ लगे आतम द्रव्यर्नु, लक्षण नवि जाण्यु; तिहाँ लगे गुणठाणुं भलु, केम आवे ताण्यु ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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