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उपदेशसंग्रह-१
२३१ प्रभुश्री-जो योगी (सदेही) होता है वह अयोगी (मुक्त) हो जाता है। उसकी बात और उसका माहात्म्य तो उसी में है! क्या कहा जाय? वही। आप हैं, अभी यहाँ बैठे हैं, वह है तो बैठे हैं। उसके सिवाय इस देहमेंसे और कुछ निकाल दिखाइये न? जड़के सिवाय क्या निकलेगा? वर्ण, रस, गंध, स्पर्शके सिवाय अन्य कुछ नहीं निकलेगा।
___“जड ते जड त्रण काळमां, चेतन चेतन तेम;
प्रगट अनुभवरूप छे, संशय तेमां केम?" इस संबंधमें क्या कहें? और कहाँ जायें? १. मुमुक्षु-आप कहें वहाँ। ..
प्रभुश्री-क्या करना है? कहिये । इन्होंने तो प्रश्न कर दिया। इसका उत्तर तो देंगे न? अब कहाँ जायें? कहा वह तो बराबर है।
४. मुमुक्षु-सेनाका नायक जहाँ ले जाय वहाँ जायेंगे। १. मुमुक्षु-हमसे न हो सके तो हमारा दोष । जैसा कहें वैसा करेंगे और जायेंगे। प्रभुश्री-ज्ञानी कहे वैसे।
५. मुमुक्षु-तब जीव जानेमें देर क्यों लगाता है? ज्ञानीने तो कहने में कुछ कसर रखी नहीं और फिर जीव कहता है कि कहाँ जायें और क्या करें ?
१. मुमुक्षु-दोष तो हमारा है इसकी ना नहीं। पर आश्रय है उसे निकाल सकते हैं क्या?
प्रभुश्री-ऐसे (चतुर) सब यहाँ बैठे हैं, अब कहिये कि किसके पास जायें कि जिससे 'हाश' (शांति हुई) ऐसा हो?
१. मुमुक्षु-आत्माके पास और कहाँ ?
प्रभुश्री-उसे किसने जाना और देखा? ज्ञानीने। तब उसके पीछे जाना चाहिये। और पूछना भी यही है। १. मुमुक्षु- “पायाकी ओ बात है, निज छंदनको छोड़ा
पीछे लाग सत्पुरुषके, तो सब बंधन तोड." सत्पुरुषके पीछे जाना है।
प्रभुश्री-है ऐसा, पर आत्मामें; अन्यत्र कहाँ जाये अब? जैसे जगतमें नगरमें, गाँवमें, बागबगीचे आदि स्थानों पर जाते हैं और आनंद मानते हैं, वैसे यहाँ कहाँ जाना है और क्या करना है?
१. मुमुक्षु-अन्यमें है वहाँसे अपनेमें ।
४. मुमुक्षु-आप ही कहते हैं कि इंजिन है उसमें डब्बे जुड़ेंगे उन्हें वह ले जायेगा। जो नहीं जुड़ेगा वह पड़ा रहेगा। अतः यदि साँकल जुड़ गयी तो जायेगा।
प्रभुश्री-ऐसा ही है। कितनी देर है? कि तेरी देरमें देर है। और कुछ काम नहीं, इतना ही है। स्त्री, पुरुष, वृद्ध, युवान, सुखी, दुःखी-सब दुःख ही है, मात्र आत्मा है वह वस्तु है। वहाँ मिलना, आना, जाना, बैठना, उठना । उसकी कृपा हो जाय तो अभी, देर कहाँ है? जिस-किसी
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