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उपदेश संग्रह - १
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ऐसा हुआ ! यह भाव है और प्रेमकी वाणी उससे प्रेम करवाती है । योग्यताके अनुसार देखता है । अरे ! वाणीमें तो कुछके कुछ भाव हो जाते हैं ।
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एक व्यक्तिके साथ किसीने दो सौ रुपयेकी शर्त लगाई कि इस कूएको फाँद जाय तो दो सौ रुपये दूँगा । उस व्यक्तिने शर्त मंजूर की, किंतु कूपके पास आता और विचारमें पड़ जाता कि कहीं कूपमें गिर गया तो? यह सोचकर पीछे हट जाता । वहाँ एक दूसरे व्यक्तिने हिंमत दी कि “भले मनुष्य ! क्या सोच रहा है? इसमें क्या लाँघना है ? लगा छलांग, देखता क्या है ?" जैसे ही वह व्यक्ति कूएके पास आया कि तुरत उस दूसरे व्यक्तिने जोरसे साहस बँधाया, “हाँ, शाबास! मार छलांग !” इस प्रकार हिंमतसे वह कूआ लाँघ गया और दो सौ रुपये जीत गया। इस पर हिम्मत दिलानेवाले व्यक्तिने कहा, “भाई ! आधे रुपये मुझे मिलने चाहिये, क्योंकि हिंमतका बल तो मेरा था ।"
वैसे ही समझ प्राप्त करनी है। समझ आ गई तो काम बन गया। स्वयं किये बिना काम नहीं बनेगा । असंग बनना पड़ेगा, छोड़ना पड़ेगा उसके बिना मुक्ति नहीं है । अतः सुनकर खड़े हो जाइये। तब कैसी बात बन जायेगी ! प्रेमके आगे क्या नियम ?
एक अहीर था । जंगलमें गायें चराता था। एक दिन उसने नारदजीको जाते देखा । उन्हें आवाज देकर बुलाया और पूछा कि कहाँ जा रहे हो ? उन्होंने कहा, “मैं भगवानके पास जा रहा हूँ ।" अहीरने कहा, "प्रभुसे मेरी इतनी बात पूछकर आयेंगे ?”
नारदजी - क्या ?
अहीर- मैं प्रतिदिन प्रभुको 'ठूमरा' (प्रातःकालका नाश्ता) चढ़ाकर भोजन करता हूँ, वह उनके पास पहुँचता है या नहीं ? दूसरे, मुझे प्रभुके दर्शन कब होंगे ?
नारदजी - अच्छी बात है, मैं पूछ लूँगा ।
फिर नारदजीने भगवानसे वह बात पूछी तो भगवानने कहा कि " ठूमरा मुझे पहुँचता है, पर दर्शन तो वह जिस इमलीके पेड़के नीचे बैठा है, उसके जितने पत्ते हैं उतने युग बीत जाने पर होंगे ।" नारदजी तो सोचमें पड़ गये कि यदि मैं यह दर्शनकी बात अहीरको करूँगा तो बिचारेको आघात लगेगा। अतः वापस लौटते हुए अहीरसे मिले बिना ही वे सीधे जाने लगे । किन्तु अहीरने दूरसे उन्हें देख लिया तो आवाज देकर बुलाया और पूछा - "क्या उत्तर है प्रभुका ?”
नारदजी - ठूमरा स्वयं आरोगते हैं ।
अहीर- और दर्शनके बारेमें क्या कहा ?
नारदजी - इस इमलीके पेडके जितने पत्ते हैं उतने युग बीतने पर दर्शन होंगे ।
यह सुनकर अहीरको तो आघात लगनेके बदले प्रसन्नता हुई, और प्रेम उमड़ पड़ा तथा नाचतेकूदते गाने लगा, “ अहो! मुझे प्रभुके दर्शन होंगे !”
प्रेम इतने उल्लाससे प्रभावित होकर प्रभुने तुरंत दर्शन दिये। यह देख नारदजीको आश्चर्य हुआ। फिर धीरेसे प्रभुको कहा, “आप ऐसा ही सच बोलते हैं ?"
प्रभु - तुम यह बात नहीं समझोगे । 'भगतको आया प्रेम तो मेरे क्या 'नेम ?'
१. नियम, सिद्धांत
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