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________________ १६६ उपदेशामृत “समझ सार संसारमें, समझु टाले दोष; समझ समझ करी जीव ही, गया अनंता मोक्ष." अब कमी क्या रही? कहो । २. मुमुक्षु-भेदज्ञानकी कमी है। प्रभुश्री–केवलज्ञानकी कमी! एक मूल बातको पकड़कर रखें। मूल नींव कहलाती है। ज्ञानीने कहा है "सद्गुरुना उपदेश वण, समजाय न जिनरूप; समज्या वण उपकार शो? समज्ये जिनस्वरूप."-श्रीमद् राजचंद्र इसका किसीको पता नहीं है, उसका भान नहीं है। सँभाल नहीं करता। यदि सँभाले तो कर्मका क्या बस है ? बेड़ा पार हो जाये । बोधकी कमी है। सद्गुरुके बिना मोक्षकी आशा न रखें। जगतमें गुरु तो बहुत हैं, वे नहीं। जो सद्गुरु हैं वे ही, अन्य नहीं। चेतो। उन्हें ही ढूँढो, उनका ही संग करो, उनके दास बन जाओ। मारें, पीटें, कुछ भी करें, चिंता नहीं। उन्हें ढूँढे बिना छुटकारा नहीं है। २. मुमुक्षु-सद्गुरुको ढूँढें कैसे? प्रभुश्री-(सबके सामने देखकर) कहो न। आता सब है, पर भान नहीं है। पूर्वकृत और पुरुषार्थके बिना कोई जीव मोक्ष नहीं गया । ये दो बातें चाहिये । इसीसे जीव मात्रका भला हुआ है। बात की हुई है, पर भान नहीं है। सद्गुरु, पूर्वकृत, पुरुषार्थ । चेतो, अब कसर नहीं रखनी है। प्रयत्न यही करना है। अन्य प्रयत्नसे तो थक गये। इसके सिवाय मार्ग नहीं सूझता। कृपालुदेवने भी यही कहा था, वही कहता हूँ। गाड़ीके पीछे छकड़ा जायेगा। यही लक्ष्य है, श्रद्धा भी यही है। त्रिकालमें यह बात नहीं बदलेगी। अन्य कहनेवाला कौन है? ४. मुमुक्षु-पुरुषार्थ करते समय कर्म बाधक होते हैं या नहीं? प्रभुश्री-कर्म हैं, वे पुद्गल हैं, आत्मा नहीं। और पुरुषार्थ तो आत्माका है। इन्द्र, चंद्र, नागेन्द्र सभीने बाँधा हुआ भोगा है; ज्ञानी भी नहीं बचे। पर कर्म किस गिनतीमें? राख हैं। प्रेमभरी गहरी बात कहता हूँ। अनंत कर्म उड़ गये, नष्ट हो गये; पर आत्माकी जो शक्ति थी वह कहीं गई? उसका नाश नहीं हुआ, वह वृद्ध नहीं हुआ। पर बड़ा भ्रम है। कहिये, क्या भूल आई है? कर्म बकरे हैं, वे भाग जाते हैं। २.मुमुक्षु-स्वयंको स्वयंकी पहचान नहीं है, भान नहीं है। ३.मुमुक्षु-'भान नहीं निज रूपर्नु ।' - प्रभुश्री-यह तो न्यायकी बात कही, फिर भी भूल है। भान नहीं वह कर्म है। उन्हें बुलाकर मिटा देते हैं, निकाल देते हैं। समझने जैसी बात है, बहुत गहन बातें हैं। सबको निकालनेवाला आत्मा है। इसकी शक्ति अनंत है। कर्म जानेके लिये आते हैं, कोई मालिक बन बैठे सो नहीं चलेगा। जो हैं वे हैं, नये नहीं होंगे। पढ़ा हो, अनपढ़ हो, पर 'एगं जाणइ से सव्वं जाणइ।' उसे जाने तो कर्म भागने लगते हैं। रात-दिन अंधेरा हो, पर दीपक आये तो अंधेरा भाग जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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