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उपदेशसंग्रह-१
१६१ व्यवहार करेंगे तो अलौकिक दृष्टिसे कौन करेगा?" जीव तो पास ही है, पर भान नहीं है। यह सब मैं बोल रहा हूँ, वह सुनाई देता होगा? “भान नहीं निजरूपY, ते निश्चय नहीं सार ।' चाबी मिले तब ताला खुलता है। फिर माल देखे तब लेता है। 'जिसके हाथमें चाबी', झटसे खोले, इतनी देर । कहाँ लेने-पूछने जाना है? सब तैयारी मौजूद है, याद आना चाहिये। अन्य सब याद करता है, अरे! मर जायेगा। जिसे याद करना चाहिये वह कहाँ है? लाओ! थोड़ा अवकाश निकालो। अन्य पंचायत और बातें करेगा, पर यह नहीं! अन्य हाहू करेगा, पर यह नहीं! करना पड़ेगा, देर-अबेरसे करना पड़ेगा।
ता. १२-११-३५, सबेरे वेदनीय जायेगी, आत्मा नहीं जायेगा। जगतमें सब जीव भोगते हैं। लौकिकमें निकाल देता है। तुझे और कुछ कहना है, जागृत करना है। बोधकी कमी है। जीव बहरा बनकर बैठा है, कुछ सुनता ही नहीं है। कुछ नहीं है, सब संयोग है और नाशवान है। कहना इतना ही है कि एक धर्म है, आत्मा है, आत्माकी याद दिलानी है। याद आ जाये तो काम बन जाता है। मनुष्यभवका अवसर बार बार नहीं मिलता।
ता. १४-११-३५, सबेरे
['भावनाबोध मेंसे मृगापुत्र-चरित्र वाचनके समय] मृगापुत्र आत्मा है। आत्माने यह काम किया। यह भी आत्मा है। समझे तो काम बन जाय । उन्होंने संसारको कुछ गिना नहीं। आत्माकी बात आयी। क्या क्या काम उन्होंने किये हैं? यह भी आत्मा है। यह आत्माकी क्रिया नहीं हुई। यह संसारी क्रिया रही है। धूल पड़े इसमें! अनादिकालकी गाँठ पड़ी हुई है। सावचेत रहना है । दुःखको सुख माना है और सुखको दुःख माना है। मृगापुत्रका वैराग्य असीम है। इस जीवकी कमी है, कर्म रोक रहे हैं। जैसे सूर्य पर बादलका आवरण आ जाता है, वैसे ही राग-द्वेष हो रहे हैं। दृष्टिकी भूल है। दृष्टि बदलनी चाहिये । आत्मा है। ‘पर्यायदृष्टि न दीजिये।' 'आत्मा' 'आत्मा' नाम लेनेसे क्या हुआ? वचन नहीं सुने, उनकी श्रद्धा नहीं हुई; योग्यताकी कमी है। यथार्थ योग मिल जाये तो काम हो जाये। अन्य सब पर है, एक आत्मा है। सत्पुरुषका एक वचन मोक्षमें ले जाता है। कृपालुदेवने मुझे कहा था कि सब जगह आत्मा देखो। फिर बात जम गयी तो जम ही गयी। एक ज्ञानचक्षु है, फिर दूसरा कैसे देखा जाय? बाह्य देखना नहीं है, आत्मा देखना है। अजब-गजब है! एक वचन पकड़में आ जाय तो काम बन जाय । ज्ञानीके वचन वैराग्यमय हैं। पानी बरसा और यदि पात्र था तो भर लिया। पात्रमें कमी हो तो पानी नहीं ठहरता । योग्यता लाओ। जीव सभी उत्तम हैं। कुछ कहा नहीं जा सकता। मात्र दृष्टिकी भूल है। बात सही है पर बहुत ऊँची है। ऐसा महा लाभका दिन कहाँसे आयेगा? अलौकिक बात है। जिसे प्रतीति और विश्वास है उसका काम बन जायेगा। ज्ञानी कहे-रात है, तो हाँ रात है-ऐसा मानना कठिन है। अपना (आग्रह) हटे नहीं तो कैसे माना जाय? संक्षिप्तमें
संक्षिप्त, कुछ न आता हो तो एक श्रद्धा और मान्यता कर लो। पक्की दृढ़ता होनी चाहिये । जड़ है Jain Educatio t ional
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