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बोटिक मत का विवरण
लिये कषाय के हेतु बने हैं और जैनधर्म भी विरोधी के लिये कषाय का हेतु बना है; तो क्या जिन भगवान का और जैनधर्म का कषाय का हेतु होने से त्याग करना जरूरी है ? अतः वस्त्र भी कषाय का हेतु है— इतने मात्र से त्याज्य नहीं (३०४२, ३०४३) ।
शिवभूति — देह, जिनेन्द्र भगवान और जैनधर्म किसी को भले ही कषाय का हेतु होते हों, किन्तु यदि उन देहादि का स्वीकार 'वे मोक्ष के साधन है' ऐसी बुद्धि के साथ किया जाए तो ये परिग्रह नहीं बनते, इन्हें ग्रन्थ नहीं कहा जा सकता (३०४४) ।
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कृष्ण— यदि यही बात है तो वस्त्रादि का भी मोक्ष के साधन मान कर ग्रहण किया जाए तो इन्हें भी ग्रन्थ = परिग्रह नहीं माना जा सकता (३०४४) और परिग्रह - जन्य दोष भी नहीं हो सकते ।
शिवभूति — वस्त्रादि ग्रन्थ मूर्च्छा के हेतु हैं, अतएव वे ग्रन्थ = परिग्रह हैं और मुनि तो निर्ग्रन्थ होता है । अतः वस्त्रादि त्याज्य है ।
कृष्ण - वस्त्रादि की तरह तुम्हारा देह और आहारादि भी मूर्च्छा-हेतु बन सकते हैं, तो वे भी ग्रन्थ- परिग्रह हैं ही। यदि कहो कि देह में अनासक्ति है, अतएव वह ग्रन्थ नहीं तो वस्त्रादि में भी जो अनासक्त हैं, उनके लिये वे भी ग्रन्थ कैसे कहे जाएँ ? (३०४५)
शिवभूति — देह और आहार प्रारम्भ अवस्था में ये मोक्ष के साधन हैं-ऐसी बुद्धि होने से ये मूर्च्छा के हेतु नहीं बनते । अतः परिग्रह नहीं कहे जाएँगे ।
कृष्ण - तब वस्त्रादि में भी 'ये प्रारम्भ अवस्था में मोक्ष के साधन हैं— ऐसी बुद्धि होने से ये भी मूर्च्छा के कारण नहीं बनेंगे, सो परिग्रह नहीं हो सकते (३०४६) ।
शिवभूति — वस्त्रादि स्थूल वस्तुओं में मूर्च्छा होना स्वाभाविक है, अतः वस्त्रादि परिग्रह हैं ही ।
कृष्ण - तब शरीर भी स्थूल होने से उसमें भी मूर्च्छा अनिवार्य होगी और वह भी परिग्रह माना जाएगा । इतना ही नहीं, वह तो अत्यन्त दुर्लभ है क्योंकि उसे खरीदा नहीं जा सकता, अतः उसमें तो विशेष रूप से तुम्हारी मूर्च्छा होगी है (३०४७) ।
वस्त्र के त्याग से ही यदि मोक्ष का सम्भव माना जाए तो तिर्यञ्च और शबर (भील) आदि वस्त्र का उपयोग नहीं करते; केवल देह और आहार मात्र में मूर्च्छा करते हैं, फिर भी उनका मोक्ष नहीं देखा गया । वे तो प्रायः नरक में जाते हैं । अतः वस्त्र के त्याग से ही मोक्ष की सम्भावना नहीं मानी जा सकती (३०४८) ।
और यह भी देखा गया है कि संसार में बहुत से मनुष्य ऐसे हैं, जिनके पास वस्त्रादि हैं ही नहीं, किन्तु दूसरे के वस्त्रादि वैभव को देख कर अपने आत्मा को नियन्त्रण में नहीं रख सकते और मूर्च्छा जैसे कषाय-दोषों से कलुषित होकर कर्ममल का अर्जन कर लेते हैं । अतएव वस्त्र के त्याग-मात्र से ही मोक्ष-गमन हो जाता है— यह मानना उचित नहीं ( ३०४९) ।
ऐसा भी देखा गया है कि कोई-कोई मुनि शरीर पर के वस्त्र, माला, अनुलेपन और
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