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ŚRUTA-SARITĀ
आभरणादि उपसर्ग के कारण होते हुए भी वे अनासक्त रहते हैं और केवल-ज्ञान को प्राप्त करते हैं । अतः वस्त्र के होने मात्र से आसक्ति होती ही है—ऐसा नहीं माना जा सकता (३०५०) ।
सारांश यह है कि किसी मुनि को विद्वेषी ने जबरदस्ती वस्त्रादि पहना दिये हों, तब भी अनासक्ति के कारण उसे केवल-ज्ञान हो सकता है ।
शिवभूति-वस्त्रादि को ग्रन्थ परिग्रह मानना जरूरी है, क्योंकि उसके रहने से चोरी आदि का भय रहता है ।
कृष्ण-यदि ऐसा माना जाए तो कभी-कभी ज्ञानादि भी 'यह कहीं नष्ट न हो जाए' इस प्रकार से भय का हेतु है; तो क्या ज्ञानादि भी ग्रन्थ माने जाएँगे ? भय का हेतुमात्र होने से ग्रन्थ नहीं माना जा सकता । भय का हेतु तो शरीर भी बनता है । देखा गया है कि 'इसे कहीं कुत्ते आदि न काट लें' इस प्रकार के भय का हेतु शरीर भी है । अतएव भय का हेतु होने मात्र से किसी को ग्रन्थ कहना उपयुक्त नहीं हैं (३०५१) ।।
शिवभूति-ज्ञान शरीरादि के विषय में हमारी बुद्धि है कि ये मोक्ष के साधन हैं, अतएव ये भय के हेतु होते हुए भी ग्रन्थ / परिग्रह नहीं कहे जाएँगे ।
कृष्ण-ऐसी स्थिति में वस्त्रादि के विषय में भी हमारी बुद्धि हो कि ये मोक्ष के साधन हैं तो ये ग्रन्थ / परिग्रह कैसे कहे जाएँगे (३०५२)
शिवभूति-विषयों के विषय में भी आरक्षण की भावना के कारण रौद्र ध्यान होता है । वस्त्र रखने पर भी रौद्र ध्यान होता है, तो वस्त्रादि को भी ग्रन्थ / परिग्रह मानना जरूरी है ।
कृष्ण-शरीरादि के विषय में भी संरक्षण की भावना से रौद्र ध्यान होगा, तो वह भी ग्रन्थ / परिग्रह हो जाएगा (३०५३) ।
शिवभूति-देहादि के विषय में रौद्र नहीं किन्तु प्रशस्त ध्यान होगा, क्योंकि ये तो मोक्ष के साधन हैं ।
- कृष्ण-इसी प्रकार वस्त्र के विषय में भी धर्म-साधन होने की भावना के कारण प्रशस्त ध्यान ही होगा । (३०५३)
वास्तविक दृष्टि से देखा जाए तो अविरत पुरुष के लिये जो-जो वस्तु भय का हेतु बनती है, वही वस्तु विरत पुरुष के लिये प्रशस्त भाव के कारण मोक्ष का हेतु बन जाती है (३०५४) । अतः यह जरूरी नहीं कि वस्त्र आर्तध्यान का कारण बने ।
देह के लिये उपकारी होने से जिस प्रकार आहार ग्रन्थ / परिग्रह नहीं है, उसी प्रकार विष का पान करने वाला कनक=सुवर्ण भी देह का उपकारी होने से ग्रन्थ / परिग्रह नहीं कहा जाएगा और धर्मान्तेवासिनी युवती भी ग्रन्थ / परिग्रह नहीं कही जाएगी (३०५५) ।
___अतः हम किसी वस्तु को एकान्ततः ग्रन्थ या अग्रन्थ नहीं मान सकते । बदि उसमें मूर्छा है तो वह वस्तु ग्रन्थ कही जाएगी और मूर्छा नहीं है तो वह ग्रन्थ नहीं मानी जाएगीऐसा निश्चय जरूरी है (३०५६) ।
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