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ŚRUTA-SARITĀ
विद्वानों ने प्राचीन हिन्दी में लिखकर उसे आधुनिक बना दिया है ।
___ अभी-अभी बीसवीं शताब्दी में भी उसी तत्त्वार्थ का अनुवाद कई विद्वानों ने किया है और विवेचन भी हिन्दी तथा गुजराती आदि प्रांतीय भाषाओं में हुआ है । सर्वश्रेष्ठ विवेचन पं. सुखलाल जी का है ।
ऐसी महत्त्वपूर्ण कृति का संक्षेप में विषयनिर्देश करना आवश्यक है । ज्ञान मीमांसा
"पहले अध्याय में ज्ञान से सम्बन्ध रखने वाली मुख्य आठ बातें हैं जो कि इस प्रकार हैं :- १-नय और प्रमाण रूप से ज्ञान का विभाग । २ -मति आदि आगम प्रसिद्ध पाँच ज्ञान
और उनका प्रत्यक्ष-परोक्षरूप दो प्रमाणों में विभाजन । ३-मति-ज्ञान की उत्प भेद-प्रभेद और उसकी उत्पत्ति के क्रमसूचक प्रकार । ४-जैन परम्परा में प्रमाण माने जाने वाले आगम शास्त्र का श्रुतज्ञान रूप से वर्णन । ५-अवधि आदि तीन अलौकिक प्रत्यक्ष और उनके भेद-प्रभेद तथा पारस्परिक अन्तर । ६-इन पाँचो ज्ञानों का तारतम्य बतलाते हुए उनका विषय निर्देश और उनकी एक साथ सम्भवनीयता । ७-कितने ज्ञान भ्रमात्मक भी हो सकते हैं यह और ज्ञान की यथार्थता और अयथार्थता के कारण । ८-नय के भेद-प्रभेद । ज्ञेय मीमांसा
ज्ञेयमीमांसा में मुख्य सोलह बातें आती हैं जो इस प्रकार हैं-दूसरे अध्याय में- १जीवतत्त्व का स्वरूप । २-संसारी जीव का भेद । ३-इन्द्रिय के भेद-प्रभेद, उनके नाम, उनके विषय और जीवराशि में इन्द्रियों का विभाजन । ४-मृत्यु और जन्म की स्थिति । ५-जन्मों के
और उनके स्थानों के भेद तथा उनका जाति की दृष्टि से विभाग । ६-शरीर के भेद, उनके तारतम्य, उनके स्वामी और एक साथ उनका सम्भव । ७-जातियों का लिंगविभाग और न टूट सके ऐसे आयुष्य को भोगने वालों का निर्देश । तीसरे और चौथे अध्याय में ८-अधोलोक के विभाग, उसमें बसने वाले नारक जीव और उनकी दशा तथा जीवनमर्यादा वगैरह । ९-द्वीप, समुद्र, पर्वत, क्षेत्र आदि द्वारा मध्यलोक का भौगोलिक वर्णन, तथा उसमें बसने वाले मनुष्य, पशु, पक्षी आदि का जीवन, काल । १०-देवों की विविध जातियाँ, उनके परिवार, भोग, स्थान, समृद्धि, जीवनकाल और ज्योतिर्मंडल द्वारा खगोल का वर्णन । पाँचवें अध्याय में ११- द्रव्य के भेद, उनका परस्पर साधर्म्य-वैधh; उनका स्थितिक्षेत्र और प्रत्येक का कार्य । १२-पुद्गल का स्वरूप, उसके भेद और उसकी उत्पत्ति के कारण १३-सत् और नित्य का सहेतुक स्वरूप । १४पौद्गलिकबन्ध की योग्यता और अयोग्यता । १५-द्रव्य सामान्य का लक्षण, काल को द्रव्य मानने वाला मतान्तर और उसकी दृष्टि से काल स्वरूप । १६-गुण और परिणाम के लक्षण और परिणाम के भेद । चारित्र मीमांसा
चारित्र मीमांसा की मुख्य ११ बातें हैं-छठे अध्याय में १-आस्रव का स्वरूप, उसके भेद और किस-किस आस्रवसेवन से कौन-कौन कर्म बँधते हैं उनका वर्णन है । सातवें अध्याय
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