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________________ स्वास्थ्यरक्षणाधिकारः (३) भावार्थ:-- स्वामिन् ! इस कर्मभूमिकी हालतमें हम लोग ठण्डी, गर्मी, व बर्सात आदिसे पीडित होकर दुःखी हुए हैं । एवं कालक्रमसे हम लोग मिथ्या आहार विहार का सेवन करने लगे हैं । इस लिये देव! आप ही शरणागतोंके रक्षक हैं ॥ ५॥ नानाविधामयभयादतिदुःखितानामाहारभेषजनिरुक्तिमजानतां नः तत्स्वास्थ्यरक्षणविधानमिहातुराणां का वा क्रिया कथयतामथ लोकनाथ ! ॥६॥ भावार्थ:-त्रिलोकीनाथ ! इस प्रकार आहार, औषधि आदिके क्रमको नहीं जाननेवाले व अनेक प्रकारके रोगोंके भयसे पीडित हम लोगोंके रोगको दूर करने और स्वास्थ्यरक्षण करनेका उपाय क्या है ? । कृपया आप बतलावें ॥ ६ ॥ __भगवानकी दिव्यध्वनि विज्ञाप्य देवमिति विश्वजगद्भितार्थ तूष्णीं स्थिता गणधरप्रमुखाः प्रधाना: तस्मिन्महासदसि दिव्यनिनादयुक्ता वाणी ससार सरसा वरदेवदेवी ॥ ७॥ भावार्थ:---इस प्रकार भगवान् आदिनाथ स्वामीसे, जगत् के हितके लिए वृषभसेन गणधर, भरतचक्रवर्ती आदि प्रधान पुरुष निवेदन कर अपने स्थानमें स्वस्थरूपसे बैठ गये । तब उस समवसरणमें भगवंतकी साक्षात् पट्टरानीके रूपमें रहनेवाली सरस शारदा देवी दिव्यध्वनिके रूपमें बाहर निकली ॥ ७ ॥ वस्तुचतुष्टयनिरूपण तत्रादितः पुरुषलक्षणमामयानामप्यौषधान्यखिलकालविशेषणं च संक्षेपतः सकलवस्तुचतुष्टयं सा । सर्वज्ञमूचकमिदं कथयांचकार ॥८॥ भावार्थ:--यह सरस्वतीदेवी (दिव्यध्वनि) सबसे पहिले पुरुष, रोग, औषध और काल इस प्रकार, समस्त आयुर्वेद शास्त्र को चार भेद से विभक्त करती हुई, इन वस्तुचतुष्टयोंके लक्षण, भेद, प्रभेद आदि सम्पूर्ण विषयोंको, संक्षेपसे वर्णन करने लगी जो कि भगवान् के सर्वज्ञत्व को सूचित करता है ॥ ८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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