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(७०६)
कल्याणकारके
द्विवार्षिकमरणलक्षण. यदेव चंद्रार्कसुमण्डलं महीत्रिखण्डमाखण्डलकार्मुकच्छवि । प्रभाति सच्छिद्रसमेतमेव वा स जीवतीत्थं खलु वत्सरद्वयं ॥ ८॥
भावार्थ:-जब मनुष्य को चंद्रमंडल, सूर्यमंडल पृथ्वी के तीनों खंड, इंद्रधनुष्य की प्रभा के समान पांचरंग से युक्त दिखते हों, अथवा ये छिद्रयुक्त दीखते हों, तो समझाना चाहिये कि वह दो वर्ष तक ही जीता है अर्थात् वह दो वर्ष में मरेगा ॥ ८ ॥
वार्षिकमृत्युलक्षण. यदद्धचंद्रपि च मण्डलमभां ध्रुवं च तारामथवाप्यरुन्धतीम् । मरुत्पथं चंद्रकरं दिवातपं न चैव पश्यन्नहि सोऽपि वत्सरात ॥ ९॥
भावार्थ:-जो मनुष्य अर्द्ध चंद्र में मण्डलाकार को देखता हो, और जिस को भुषतारा, अरुंधती तारा, आकाश, चंद्रकिरण व दिनमें धूप नहीं दीखते हों वह एक कर्क से अधिक जी नहीं सकता ॥ ९॥ .
- एकादशमासिकमरणलक्षण. स्फुरत्पभाभासुरमिंदुमण्डलं निरस्ततेजोनिकरं दिवाकरं । य एव पश्यन्मनुजः कदाचन श्याति चैकादशमासतो दिवम् ॥ १० ॥
भावार्थ-जो मनुष्य चंद्रमण्डल को अधिक तीव्र प्रकाशयुक्त व सूर्य मण्डल को तेजोरहित अनुभव करता हो या देखता हो वह ग्यारह महीने में सर्ग को ज ता हैं अर्थात् मरण को प्राप्त करता है ॥ १० ॥
दशमासिक मरण लक्षण. प्रपश्यति छर्दिकफात्ममूत्रसत्पुरीषरतस्सुरचापसत्पमं । सुवर्णताराच्छविसुप्त एव वा प्रबुद्ध एवं दशमान्स जीवति ॥ ११ ॥
भावार्थ:-स्वप्न में या जागृत अवस्था में जो मनुष्य अपना वमन, कफ, मूत्र, मल व वीर्य को इंद्रधनुष, सुवर्ण अथवा नक्षत्र के वर्ण में देखता हो वह दस मासतक जीता है ॥ ११ ॥
__ नवमासिक मरण लक्षण. सुवर्णवृक्षं सुरलोकमागतं मृतान्पिशाचानथ वांवर पुरे । महश्य जीवैभवमासमद्भुतान् प्रलंबमानानधिकान्नताभरान्'॥ १२ ॥
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