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________________ रिष्टाधिकारः । (७५) भावार्थ:-अब आगे संसार की स्थिति को अच्छे तरह विचार करनेवाले महात्मावों के लिये बहुत प्रयत्न पूर्वक मरणसूचक चिन्हों को कहेंगे। जो अत्यधिक वृद्ध हुए हैं उनको मरणका भय सदा रहता है ॥ ४ ॥ : मृत्यु को व्यक्त करने का निषेध. 'जरारुजामृत्युभयेन भाविता भवानरेष्वप्रतिबुद्धदेहिनः ।, यतश्च ते बिभ्यति मृत्युभीतितस्ततो न तेषां मरणं वदेदिह ॥ ५॥ भावार्थ:-जो लोग बुढापा रोग, मरण इन के भय से युक्त हैं और जो भवांतरों के विषय में कुछ भी जानकार नहीं है अर्थात् संसार के रूरूप. को नहीं समझते हैं ऐसे व्यक्तियोंको ( उन में व्यक्त मरण चिन्हों से इस का अमुक समय में मरण होजायगा यह निश्चय से मालुम पड़ने पर भी) कभी भी मरण वार्ताको नहीं कहना चाहिये । क्यों कि ये लोग अपने मरण विषय को सुनकर अत्यंत भयभीत हो जाते हैं। जिससे अनेक रोग होकर मरण के अवधि के पहिले ही मरनेका भय रहता है, इतना ही नहीं पदि अत्यधिक डरपोक हो तो तत्काल भी प्राणत्याग कर सकते हैं) ॥५॥ मृत्यु को व्यक्त करने का विधान.. - चतुर्गतिवष्य नुबध्ददुखिता विभीतचित्ताः खलु सारवस्तु ते । . . . समस्तसौख्यास्पदमुक्तिकाक्षिणस्मुखेन श्रुण्वंतु निगद्यतेऽधुना॥ ६॥ भावार्थ:--जो चतुर्गतिभ्रमणस्वरूप इस संसार के दुःखों से भयभीत होकर सारभूत श्रेष्ठ व समस्त सौख्य के लिये स्थानभूत मोक्षको प्राप्त करना चाहते हैं, उनके लिये तो मरणवार्ता को अवश्य कहना ही चाहिये। और वे भी अपने मरणसमय के चिन्होंको खुशी से सुनें । अब आगे उसी अरिष्ट लक्षणका प्रतिपादन करेंगे ॥ ६॥ रिष्टलक्षण. यदेव सर्व विपरीतलक्षणं स्वपूर्वशीतप्रकृतिस्वभावतः । तदेव रिष्टं प्रतिपादितं जिनरतःपरं स्पष्टतरं प्रवक्ष्यते ॥ ७ ॥ भावार्थ-शरीर के वास्तविक प्रकृति व स्वभावसे बिलकुल विपरीत जो भी लक्षण प्रकट होते हैं उन्हें जिनेंद्र भगवानने रिष्ट कहा है। इसी रिष्ट का लक्षण विस्तार के साथ यहां से आगे प्रतिपादन करेंगे ॥ ७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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