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कल्याणकारके
युक्त होकर हमेशा जिनेश्वर की पूजा करते हुए रसबंधन करने के लिये आरम्भ करें ॥९॥
रसशालानिमाणविधि. अथ प्रथममुत्तरायणदिने तु पक्षे शुचौ । स्वचंद्रबलयुक्तलग्नकरण मुहूतं शुभे ।। प्रशस्तदिशि वास्तुलक्षणगुणक्षितावासम-।
प्यनियरसबंधनार्थमतिगुप्तमुद्भावयेत् ॥ १० ॥ भावार्थ:- श्रेष्ठ रस बंधन करने के लिये सर्व प्रथम उत्तरायण के शुक्ल पक्ष में लग्न, चन्द्रबल से युक्त श्रेष्ठ करण, इत्यादि शुभलक्षणोंसे लक्षित (युक्त ) शुभ मुहूर्त में प्रशस्त दिशा में, एक ऐसा मकान ( रसशाला ) निर्माण करना चाहिये जो वास्तुशास्त्र में कथित गुणों से युक्त और अत्यंत गुप्त हो ॥१०॥
रसंसस्कार विधि. जिनेंद्रमधिदेवतामनुविधाय यक्षेश्वरं । विधाय वरदांबिकामपि तदाम्रकूष्माण्डिनीं ॥ .. समय॑ निखिलार्चनैस्तनुविसर्गमार्ग जपे- । च्चतुगुणितषटु मिष्टगुरुपंचसन्मंत्रकम् ॥ ११ ॥ कृतांजलिरथ प्रणम्य भुवनत्रयकाधिपा-। नशेष जिनवल्लभाननुदिनं समारंभयेत् ॥ प्रधानतमसिद्धभक्तिकृतपूर्वदीक्षामिमां ।
नवग्रहयुतां प्रगृह्य रससिद्धये बुद्धिमान् ॥ १२ ॥ भावार्थ:- रससिद्धि के लिये सबसे पहिले [ पूर्वोक्त रसशाला में ] श्री. जिनेंद्र भगवान्, अधिदेवता [ मुख्य २ देवतायें ] यक्षेश्वर [ यक्षोंके स्वामी गोमुख श्रादि यक्ष] वर प्रदान व.रनेवाली अम्बिका व कूष्मांडिनी यक्षी इन को, इन की सम्पूर्ण अर्चनविधि से अर्चन [ पूजा ] कर कायोसर्ग पूर्वक पंचनमस्कार ( णमोकार ) मंत्र को २४ चौवीस वार जप करना चाहिये । तदनंतर हाथ जोडकर तीनों लोकों के स्वामी, समस्त जिनेश्वर अर्थात् चौवसि तीर्थंकरों को नमस्कार करके, प्रधानभूत सिद्धभाक्ति को भक्ति से पठन करना चाहिये और नवग्रहों से युक्त [ नवग्रहों के अर्चन करके ] इस पूर्वदीक्षाको धारण कर हमेशा बुद्धिमान् वैद्य रस के संस्कार करने के लिये आरम्भ करें।
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