________________
सर्वोषधकर्मव्यापच्चिकित्साधिकारः ।
केशकृष्णीकरण तैल. .. पिण्डीतत्रिफलामृतांबुरुहसक्षीरद्रुमत्वङ्कहा-। नीलीनीलसरोजरक्तकुमदांघ्रिकाथसंसिद्धके ।। 'तैले लोहरजस्सयष्टिमधुकं नीलांजनं चर्णितं ।
दत्वा खल्वतले प्रमर्दितमिदं केशैककाष्ण्यविहम् ॥९२ ॥ भावार्थ-नफल, त्रिफला, गिलोय, कमल, क्षीर वृक्षों की छाल, महानील नीलकमल व रक्तकाल के जड, इन से सिद्ध तेल में लोहचर्ण को मिला कर खरल में डाल कर खूब घोटे । फिर उसे पूर्वोक्त विधि प्रकार उपयोग में लायें तो केश अत्यंत काले होते हैं । ९२ ॥
कल्कं सत्रिफलाकृतं प्रथमतस्सलिम्प्य केशान् सितान् । धौतांस्तत्रिफलांबुना पुनरपि प्रमृक्षयेत्क्षौद्रस-- ॥
भदूतैस्तंडुलजै सुकुंदकयुतैस्तत्तण्डुलाम्बुद्रवैः । - पिष्टैर्लोहरजस्तमैरसितसत्केशा भवति स्फुटम् ॥ ९३ ॥
भावार्थ:-सफेद बालों पर पहिले त्रिफळा के कल्क को लेप कर के त्रिफला के काढे से धो डाले । पश्चात् लोहचर्ण को इस के बराबर, चम्पा, वायविडंग कुंदुरु इन के रस व चावल के धोबन से अच्छीतरह पीस कर बालों पर लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं ॥९॥
केश कृष्णीकरण हरीतक्यादि लेप. तैलोभ्दृष्टहरीतकी समधृतं कांसस्य चूर्ण स्वयं । भृष्टं लोहरजस्तयां समधृतं नीलांजन तत्समम् ॥ भुंगी सन्मदयंतिकासहभवासरीयनीलीनिशा-1 कल्कैस्तत्सदृशैस्सुमर्दितमिदं तैलेन खल्वोपले ॥ ९४ ॥ लोहे पात्रवरे घने सुनिहितं धान्योरुकूपस्थितम् । षण्मासं ह्यथवा त्रिमासमपि तन्मासद्वयं मासकम् ॥ एकं तच्च समुतं समुचितैस्सत्पूजनैः पूजितं । लिम्पेत्सांप्रतमेतदंजननिभान् केशान् प्रकुत्सितान् ॥ ९५ ॥
१ अथवा अधिक्काथ इस शब्द का अर्थ चतुर्थाशकाथ भी हो सकता है । २ लिह्य इति पाठांतरे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org