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भेषजकर्मोपद्रवचिकित्साधिकारः ।
परिकर्तिका कहते हैं। ऐसी अवस्था में मुलैठी व अधिक पिच्छिल औषधियों द्वारा, आस्थापन व अनुवासन बस्ति का प्रयोग करना चाहिए ॥ ११२ ॥ ११३ ॥
पारिस्रावका लक्षण. तथातितीक्ष्णाम्लपटुप्रयोगतो । भवेत्परिस्रावमहामयो नृणाम् ॥ स चापि दौर्बल्यमिहांगसादनं । विधाय संस्रावयतीह पैत्तिकम् ॥११४॥
भावार्थ:----अत्यंत तीक्ष्ण व आम्ल औषधियों के द्वारा प्रयुक्त बस्ति से मनुष्यों को परिस्राव नामक महारोग उत्पन्न होता है । जिस में शरीर में अत्यंत अशक्तपना, व थकावट होकर पित्तस्राव होने लगता है ॥ ११४ ॥
प्रवाहिका लक्षण. सुतीक्ष्णबस्तरनवासतोपि वा । प्रवाहिका स्यादतियोगमापदः ।। प्रवाहमाणस्य विदाहशूलवत् । सरक्तकृष्णातिकफागमो भवेत् ॥११५॥
भावार्थ:--अत्यंत तीक्ष्ण आस्थापनबस्ति वा अनुवासनबस्ति के प्रयोग से उन का अतियोग होकर, प्रवाहिका उत्पन्न होती है जिस में प्रवाहण ( दस्त लाने के लिए जोर लगाना ) करते हुए मनुष्य के गुदामार्ग से दाह व शूल के साथ २ लाल [अथवा रक्तमिश्रित ] व काले रंग से युक्त अधिक कफ निकलता है ॥ ११५॥
। इन दोनोंकी चिकित्सा. ततस्तु सर्पिर्मधुरौषधवै- | निरूहयेदप्यनुवासयेत्ततः ॥
सुपिच्छिलैः शीतलभषजान्वितैः । घृतैः सुतैलैः पयसैव भोजयेत्॥११६॥ . भावार्थ:-इन दोनों रोगोंके उत्पन्न होने पर, पहले घी व मधुर औषधियोंके काढे से, निरूहबस्तिका प्रयोग करके पश्चात् पिच्छिल व शीतल औषधियोंसे संयुक्त घी या तेल से अनुवासनबस्ति देवें । एवं उसे दूध ही के साथ भोजन करावें ॥ ११६ ॥
हृदयोपसरणलक्षण. समारुते तीक्ष्णतरातिपीडितः । करोति बस्तिहदयोपसर्पणम् । तदेव मूर्टोन्मददाहगौरवप्रसेकनानाविधवेदनावहम् ॥ ११७ ॥
भावाय ...-बातोद्रेक से युक्त रोगी को अत्यंततीक्ष्ण औषधियों से सयुंक्त बस्ति को जोर से दबाकर अंदर प्रवेश करादे तो उस से हृदयोपसरण (हृदयों पसर्पण)
१ इस विषय को ग्रंथांतर में इस प्रकार प्रतिपादन किया है कि, तीक्ष्णनिरूहबास्त देनेसे तथा वातयुक्त में अनुवासनबास्त देने से हृदयोपसरण होता है |
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