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भेषजकीपद्रवचिकित्साधिकारः।
(.६०५)
भावार्थ:-जिस का शरीर स्नेहन व स्वेदन से संस्कृत न हो, रूक्ष भी हो, उसे रूक्ष, अल्पवीर्यवाले, अत्यल्प ( प्रमाण में बहुत ही कम ) औषधि का सेवन करावें तो वह न ऊपर ही जाता है न नीचे ही । अर्थात् उस से न घमन होता है न विरेचन । ( इसे अयोग कहते हैं )। और वह दोषों के समूह को उत्क्लेशित कर के, साथ में आध्मान ( अफराना ) हृदयग्रह, प्यास, दाह व मूली को उत्पन्न करता है । ऐसा होनेपर [ उग्र औषधियोंसे ] फिर पूर्णरीतीसे वमन कराना चाहिये । विरेचनी पधि का सेवन करनेपर, दस्त बराबर न लगे, अथवा दस्त बिलकुल ही न लगे, औषध पेट में रह जावे तो शीघ्र ही, विरेचन होने के लिये गरम पानी पिलाना चाहिये । गरम पानी पिलाकर शीघ्र ही हथैली तपाकर उस से पीट, दोनो पार्श्व [ पंसवाडे ] उदर को सेकना चाहिये । इस प्रकार स्वेदन करने पर क्षणकाल से दोष, द्रवता को प्राप्त होकर बाहर दौडते हैं [ निकलते हैं ] अर्थात् दस्त लगता है । यदि स्वल्प ही दोष बाहर निकलकर [ थोडे ही दस्त होकर ] [ बीचमें ] औषध पच जावे तो इस अयोग विशेष के प्रतीकार भूत [ निम्नलिखित क्रमसे ] औषध की योजना करे । पहिले यह जानकर कि शरीरसे दोष थोडा गया हुआ है ( दोष बहुत बाकी रह गया है ) रोगी सबल है, और दिन भी बहुत बाकी है [ सूर्यास्तमान होने को बहुत देर है ] ऐसी हालत में, अव्यर्थ
औषधकी मात्रा को खिलाकर विरेचन करावें । इतने करनेपर भी जिनको विरेचन न होता हो, तो स्नेहन स्वेदन से शरीर को प्रतिदिन संस्कृत कर, और अस्थापन व अनुवासन बस्ति का प्रयोग करके, अत्यंत हितभूत विरेचन देना चाहिये ।। ६२ ॥६३ ॥६४ ॥
.. दुर्विरेच्य मनुष्य. . . वेगाघातपराः क्षितश्विरनरा भृत्यांगना लज्जया। लोभाच्चापि वणिजनाः विषयिणश्चान्येपि नात्मार्थिनः ॥
ये चात्यंतविरूक्षितास्सत्ततविष्टंभास्तथाप्यामयाः। .. दुश्शोध्यास्तु भवेयुरेत इति तान सुस्नेह्य संशोधयेत् ।। ६७ ॥
भावार्थ:---- राजा के पास में रहनेवाले मनुष्य, सेवक वर्ग, ( ये लोग भय से ) स्त्रियां ल जाते, वैश्य [ बनिया ] लोभ से, विषय लोपी मनुष्य, (विषय सेवन की आसक्तिसे ) उसी प्रकार अपने आत्महित को नहीं चाहनेवाले लोग, मल के वेग को रोका करते हैं। ऐसे मनुष्य, तथा जो अत्यंत रूक्षतासे (रूखापने से) संयुक्त हैं, हमेशा विबंध [ दस्त का साफ न होना ] से पीडित हैं, एवं उसी प्रकार के अन्य रोगों से व्याप्त हैं वे भी दुविरेच्य होते हैं अर्थात् इन को विरेचक औषधि देनेपर बहुत ही
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