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________________ (५९४) कल्याणकारके भावार्थ:-जो रोगी अत्यंत उद्रिक्त बहुत दोषोंसे दूषित हों, जो तीक्ष्ण अग्नि से युक्त हों, जो बलवान् हों, जो महाव्याधि से पीडित हों, ऐसे रोगियोंको कुशल वैध अच्छी तरह भोजन करावें अर्थात् ऐसे रोगी वमन कराने योग्य होते वमन का काल व औषध. तत्रापरेाः प्रविभज्यकाले साधारणे प्रालरवेक्ष्य मात्राम् । कल्कैः कषायैरपि चूर्णयोगेः स्नेहादिभिर्वा खलु वामयेत्तान् ॥३५॥ भावार्थ:-वैद्य साधारण काल [ अधिक शीत व उष्णता से रहित ऐसे प्रावृट् शरद् व वसंतऋतु) में, [वमनार्थ दिये हुए भोजन को दूसरे दिन प्रातः काल में, वमन कारक औषधियोंके कल्क, कषाय, चूर्ण, स्नेह, इत्यादिकों को योग्य प्रमाण में सेवन कराकर वमन योग्य रोगीयोंको वमन कराना चाहिये ॥ ३५ ॥ ___ वमनविरेचन के औषधका स्वरूप. दुर्गधदुर्दर्शनदुस्स्वरूपैर्बीभत्ससात्म्यतरभेषजैश्च । संयुक्तयोगान्वमने प्रयुक्तो वैरेचनानत्र मनोहरैस्तु ॥ ३६ ॥ भावार्थ:-चमन कर्म में दुर्गंध,देखने में असह्य, दुःस्वरूप, बीभत्स ( निकारक) घ अननुकूल (प्रकृति के विरुद्ध ) ऐसे स्वरूप युक्त औषधियोंको प्रयोग करना चाहिये । विरेचन में तो, वमनौषध के विपरीतस्वरूपयुक्त मनोहर सुंदर औषधियों का ही प्रयोग करना चाहिये ।। ३६ ॥ बालकादिक के लिए वमन प्रयोग, बालातिवृद्धौषधभारुनारी दौर्बल्ययुक्तानपि सद्रवैस्तैः । क्षीरादिभिर्भेषजमंगलाढयम् तान्पाययित्वा परितापयेत्तान् ॥ ३७॥ . भावार्थ:-जो बालक हैं, अतिवृद्ध हैं, औषध लेने में डरनेवाले हैं, स्त्रियां हैं एवं अत्यंत दुर्बल हैं, उनको दूध, यवागू , छाछ आदि योग्य द्रवद्रव्यों के साथ मंगल मय, औषध को मिला कर पिलाना चाहिये, पश्चात् ( अग्निसे हाथ को तपाकर ) उन के शरीर को सेकना चाहिये [ और वमन की राह देखनी चाहिये] ॥ ३७॥ १ यह काल ही वमन के योग्य है । २ वामयेदिति पाठांतरं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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