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कल्याणकारके
उत्पन्न शास्त्रसमुद्रसे निकली हुई बूंदके समान यह शास्त्र है । साथमें जगतका एक मात्र हिंतसाधक है [ इसलिये इसका नाम कल्याणकारक है ] ॥ ६६ ॥
इत्युग्रादित्याचार्यविरचिते कल्याणकारके उत्तरतंत्राधिकारे कर्मचिकित्सितं नाम प्रथम आदित एकविंशोऽध्यायः।
इत्युग्रादित्याचार्यकृत .. कल्याणकारक ग्रंथ के चिकित्साधिकार में . विद्यावाचस्पतीत्युपाधिविभूषित वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री द्वारा लिखित
भावार्थदीपिका टीका में कर्मचिकित्साधिकार नामक उत्तरतंत्र में _प्रथम व आदिसे एक्कीसवां परिच्छेद समाप्त हुआ ।
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