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(५४४)
!: कल्याणकारके
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कूर्चकूर्च शिरगु’फ मर्म.. मध्यात्पादस्योभयत्रीपरिष्टात् । फू! नाम्नात्र क्षते तद्भमः स्यात् ।। गुल्फाधस्ताकूर्चशीर्षोतिदुःख ।
शोफो गुल्फे स्तब्धमुप्तिस्वरुक्च ॥ ५० ॥ भावार्थः पादतल को मध्य [क्षिप्रमर्म ]. से ऊपर की ओर [ पंजेकी तरफ ] दोनोंतरफ " कूर्च" नाम का मर्म है । वहां जखम होने पर पाद में भ्रमण वा कम्पन होता है। गुल्फ की संधि से नाचे [दोनों बाजू ] " कूर्चशिर" नाम का मम है। वहां विधने से सूजन और पीडा होती है। पाद और जंघा की संधि में " गल्फ " नाम का मर्म है। वहां चोट लगने से, स्तब्धता [ जकड जामा ] सुप्ति (स्पर्श ज्ञान का नाश ) और पीडा होती है ॥ ५० ॥
इंद्रवस्ति जानुमर्म. पाणिप्रत्यर्धस्वगंधार्धभागे । रक्तस्रावादिद्रवस्ती मृतिस्स्यात् ।।
जंघो?ः संधौ तु जानुन्यमांधं । ..... खंजत्वं तत्र क्षते वेदना च ॥ ५१ ।।
। भावार्थः- एडी को लेकर ( एडी के बराबर ) ऊपर की ओर पिंडली के मध्य भाग में " इंश्वस्ति" नाम का मर्म है। वहां चोट लगने वा बिधनेसे, रक्तस्राव होकर मरण होता है । पिंडली और उस की जोड में “ जानु" [घुटना ] नामका मर्म स्थान है। वहां क्षत होने पर लंगडापन, और पडिा होती है ।। ५१ ॥
आणि व उवामर्मः जानुन्यू व्यंगुलादाणिरुक्च । स्थाब्ध्यं सक्थनः शोफबृद्धिः क्षतेऽस्मिन् ॥
ऊर्वोमध्ये स्यादिहोति मर्म ।
..रक्तस्रावात्सक्थिन शोफक्षयश्च ॥ ५२ ॥ . . ... भावार्थ:-जानु के ऊपर (दोनों तरफ) तीन अंगुल में आणि नामकः मर्म है, जिस के क्षत होनेपर पीडा साथल की स्तब्धता व शोफकी वृद्धि होती है। ऊरु [साथली के बीच में ऊर्वी नामक मर्म है । वहां विंधने से रक्त स्राव होने के कारण, साथल
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