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________________ शास्त्रसंग्रहाधिकारः । (५३९) ... भावार्थ:-जो स्वप्नमें खच्चर, ऊंट, गधा, सूअर, भैंस व भयंकर व्याघ्र (शेर) आदि कर मृमोंपर चढकर शीघ्र ही दक्षिण दिशा की ओर जाते हुए दृश्य को देख रहा हो, शरीर पर तेल लगाये हुए स्वयंको लालवस्त्र व माला को धारण करनेवाली काली स्त्री बार २ परिहास करती हुई, नाचती हुई बांधकर लेजा रही हो, शल्य ( कांटे) व भस्म को धारण करनेवाले प्रेतसमूह, अथवा अपने नौकर या अत्यंत लाल वा काले कपडे पहने हुए साधु, अत्यंत विकृत रूपवाली स्त्री, यदि रोगी को पकडकर कहीं ले जाते हुए दृश्य को देख रहा हो, जो रूई, तिल के कल्क, खल, लोहसमूहों को स्वप्न में देखता हो तो समझना चाहिये यह सब उस रोगी के मरण के चिन्ह हैं। ऐसे रोगीकी चिकित्सा न करनी चाहिये ॥ ३३ ॥ ३४ ॥ विशिष्ट रोगों में विशिष्ट स्वप्न व निष्फलस्वप्न. शोणितपित्तपाण्डुकफमारुतरोगिषु रक्तपातपा-। ण्डुप्रकरारुणाभबहुवस्तुनिदर्शनतो मृतिस्तु ते॥ षो क्षयरोगिणामपि च वानरबंद्युतया यथापक-। त्यात्मविचिंतितान्यखिलदर्शनकान्यफलानि वर्जयेत् ॥ ३५॥ भावार्थ:-रक्तपित्तसे पीडित लाल, पांडुरोगा पलिा, कफरोगी सफेद व वातरोग से पीडित लाल वर्ण के बहुत से पदार्थोंको देखें और क्षयरोग से पीडित मनुष्य बंदर को मित्र के सदृश अथवा उस के साथ मित्राता करते हुए देखें तो इन का जरूर मरण होता है । जो स्वप्न रोगी के प्रकृति के अनुकूल हो, अभिन्न स्वभाववाला हो एवं संस्कार गत हो [जो विषय व वस्तु बार बार चितवना किया हुआ हो वही स्वप्न में नजर आंवें] ऐसे स्वप्न फलरहित होते हैं ॥ ३५ ॥ दुष्ट स्वप्नों के फल. स्वस्थजनोऽचिरादधिक रोगचयं समुपैति चातुरो । मृत्युमुखं विशत्यसदृशासुरनिष्ठुररूपदुष्टदु-॥ स्वप्ननिदर्शनादरललामसुखाभ्युदयैकहेतुसु-. । स्वप्नगणान्ब्रवीम्युरुतरामयसंहतिभेदवेदिनम् ।। ३६ ॥ भावार्थ:--पूर्वोक्त प्रकार के असृदृश व राक्षस जैसे भयंकर, दुष्ट स्वप्नों को यदि स्वस्थ मनुष्य देखें तो शीघ्र ही अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त होता है। रोगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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