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________________ कल्याणकारके हैं [ क्यों कि रस छह ही हैं ] जैसे १ मघुर रस (मीठा) २ अम्ल (खट्टा ] रस, ३ लवण [नमकीन ] रस, ४ कटुक चिरपरा] रस, ५ तिक्त (कडवा) रस, ६ कषाय (कषैला)रस. दो २ रसों के संयोग से १५ भेद होते हैं । १ मधुराम्ल, २ मधुरलवण, ३ मधुर तिक्त, ४ मधुरकटुक, ५ मधुरकषाय. इस प्रकार मधुर रस को अन्य रसों में मिलाने से ५ भेद हुए। १ अम्ललवण, २ अम्लकटुक, ३ अम्लतिक्त, ४ अम्लकषाय, इस प्रकार अम्लरस को अन्य रसों के साथ मिलाने से ४ भेद हुए। १ लवणतिक्त, २ लवणकटुक, ३ लवणकषाय. इस तरह लवणरस अन्य रसों के साथ मिलाने से ३ भेद हुए। १ कटुकतिक्त, २ कटुककषाय, इस प्रकार कटुक को तिक्त ते मिलाने से २ भेद हुए। तिक्तकषाय इन दोनों के संयोगसे एक भेद हुआ । इस प्रकार १५ भेद हुए । तीन २ रसों के संयोग से २० भेद होते हैं । वह इस प्रकार है । मधुर के साथ दो २ रसोंके संयोग करने से उत्पन्न दश भेद. १ मधुराम्ललवण, २ मधुराम्लक टक, ३ मधुराम्लातक्त, ४ मधुराग्लकषाय, ५ मधुरलवण कटुक, ६ मधुरलवणतिक्त, ७ मधुरलवणकषाय, ८ मधुरकटुकतिक्त, ९ मधुरकटुककषाय, १० मधुरतिक्त कषाय । अम्लरस के साथ मधुर व्यतिरिक्त अन्य रसों के संसर्ग से जन्य छह भेद । १ अम्ललवण कटुक, २ अम्ललवणतिक्त. ३ अम्ललवण कषाय, ४ अम्लकटुकषाय, ५ अम्लकटुतिक्त, ६ अम्लतिक्तकषाय । लवण रस के साथ संयोगजन्य तीन भेद । १ लवणकटुकतिक्त, २ लवणकटुकपाय, ३ लवणतिक्तकषाय । कटुकरस के साथ संयोगजन्य एक भेद १ कटुतिक्तकषाय । इस प्रकार २० भेद हुए । चार चार रसों के संयोग से १५ भेद होते हैं। इस में मधुर के साथ संयोगजन्य दश भेद अम्लरस के साथ संयोग से उत्पन्न भेद चार, लवण के साथ संसर्गजन्य भेद एक होता है । इस प्रकार पंद्रह हुए । इस का विवण इस प्रकार है ।। १ मधुराम्ललवणकटुक, २ मधुराम्ललवणतिक्त, ३ मधुरामललवणकषाय, ४ मधुरामलकटुककषाय, ५ मधुराम्लकटुकतिक्त, ६ मधुरलवणतिक्तकटुक, ७ मधुराम्लतिक्तकषाय, ८ मधुरलवणकटुककषाय, ९ मधुरकटुतिक्तकषाय, १० मधुरलवण तिक्तकषाय. - १ अम्ललवणकटुतिक्त, २ अम्ललवणकटुकषाय, ३ अम्ललवणतिक्तकपाय, ४ अम्लकटुतिक्तकषाय । १ लवणकटुतिक्तकपाय ॥ पांच रसों के संयोग से ६ भेद होते हैं । वह निम्नलिखितानुसार है । १ मधुरामललवणकतिक्त २ मधुराम्ललवणकटुकषाय ३ मधुराम्ललवणतिक्त कषाय, मधुराम्लकटुतिक्तकषाय, मधुरलवणकटुतिक्तकषाय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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