________________
winraaruwari
new
विपसेगाधिकारः।
( ५२७) को अब क्रमशः कहेंगे । १. शोषण ( सुखना ) २. लेपन ( लेप करना ) ३. सेचन ( तरडे देना ) ४. अभ्यंग, [ मलना ] ५. तापन [ तपाना-स्वेद ] ६. बंधन [बांधना] ७. लेखन [ खुरचना ] ८ दारण [ फाडदेना ] ९. विम्लापन [ विलयन करना ] १०. नस्य, ११, पान, १२. कबलग्रहण [ मुख में औषध धारण करना ] १३. व्यधन [वींधना ] १४. सीमन [ मीना ] १५. स्नेहन [ चिकना करना ] १६. भेदन [चिरना] १७. एषण [ढूंढना] १८. आहारण निकालना] १९ रक्तमोक्षण खून निकालना] २०.पीडन.(दबाना सूतना) २१.शोणितास्थापन [खून को रोकना]२२.कषाय [काढा] २३, कल्क [लुगदी २४.घृत२५. तैल, २६.निर्वापण शांति करना] २७. यंत्रा २८. वर्ति, २९, वमन३०. विरेचन, ३१. चूर्णन [अघचूर्णन वुरखना] ३२. धूपन (धूप देना) ३३. रसक्रिया ३४. अवसादन [ नीचे को बिठाना ] ३५. उत्सादन ( ऊपर को उकसाना ) ३६. छेदन [ फोडना ] ३७. उपनाह [ पुलिटिश ] ३८. मिथुन [संधान जोउना ] ३९. घृत. [घी का उपयोग] ४०. शिरोविरेचन, ४१. पत्रादान (पत्ते लगाना, पत्ते बांधना) ४२. दारुण कर्म [ कठोर करना ] ४३. मृदु कर्म [ मृदु करना ] ४४. अग्निकर्म ( दाग देना ) ४५. कृष्णकर्म ( काला करना ) उत्तर बस्ति ४७. विषघ्न ४८. बृंहण कर्म [ मांसादि बढाना ] ४९ क्षारकर्म, ५०. सितकर्म [ सफेद करना ] ५१. कृमिघ्न [ कृमिनाशक-विधान ] ५२. आहार ( आहारनियंत्राण ) ५३. रक्षाविधान, ये त्रेपन उपक्रम हुए । उपरोक्त कषाय, वर्ति, घृत, तैल, कल्क, रसक्रिया अवचून इन सात उपक्रमों के शोधन, रोपण, कार्यद्वय के भेदसे [ प्रत्येक के ] दो भेद होते हैं अर्थात् एक २ उपक्रम दो २ कार्य करते हैं । इसलिये इन सात उपक्रमों के चौदह भेद होचे हैं। ऊपर के ५३ उपक्रमों में कषायादि अंतर्गत होने के कारण अथवा उन के उल्लेख उस में हो जाने के कारण द्विविध [ शोधन रोपण ] १५ अपेक्षाकृत भेद में से एकविध के उपक्रमोंका उल्लेख अपने अप हो जाता है । और अपेक्षाकृत जो सात भेद अवशेष रह जाते हैं उन को ५३ उपक्रमों में मिलाने से ६० उपक्रभ हो जाते हैं । सम्पूर्ण रोगों को प्रशमन करने के लिये अग्निकर्म, शस्त्रकर्म, क्षारकर्म, औषधकर्म, इस प्रकार चतुर्विध कर्म कहा गया है ॥ ४ ॥ ५॥ ६ ॥ ७ ॥
स्नेहनादिकर्मकृतमयॊको पथ्यापथ्य. स्नेहनतापनोक्तवमनातिविरेचनसानुवासना-। स्थापनरक्तमोक्षणशिरःपरिशुद्धिकृतां नृणामयो-॥ ग्वाम्यतिरोष थुनधिरासनचंक्रमणस्थितिप्रया। सोच्चवचःसशोकगुरुभोजनभक्षणवाहनान्यपि ॥ ८ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org