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विषरोगाधिकारः।
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इन लक्षणों से समझना चाहिये कि उस रोगीने अत्यंत विषम विषको पीया है। अब आप्तोपदेश के अनुसार सर्प के काटे हुए रोगीके पृथक् २ असाध्य लक्षणों को कहेंगे ॥ १२८॥
सर्पदष्टके असाध्यलक्षण. वल्मीकेषूप्रदेवायतनपितृवनक्षीरवृक्षेषु संध्या-। .. काले सच्चत्वरेषु प्रकटकुलिकवेलासु तदारुणोग्र-।। ख्यातेष्वर्वेषु दष्टा श्वयथुरपि सुकृष्णातिरक्तश्च दंशे । दंष्ट्राणां वापदानि स्वसितरुधिरयुक्तानि चत्वारि यस्मिन् ॥१२९॥ क्षुत्तृड्पीडाभिभूताः स्थविरतरनराः क्षीणगावाश्च बालाः । पित्तात्यंतातपानिप्रहततनुयुता येऽत्यजीर्णामयार्ताः ।। येषां नासावसादो मुखमतिकुटिलं संधिभंगाश्च तीव्रो ।
वाक्संगोऽतिस्थिरत्वं हनुगतमपि तान् वर्जयेत्सर्पदष्टान् ॥ १३० ।। भावार्थ:-बामी, देवस्थान, स्मशान, क्षीरवृक्षों [पीपल वड आदि के नीचे, इन स्थानों में, संध्या के समय में, चौराहे में ( अथवा यज्ञार्थ संस्कृतभूप्रदेश ) कुलिकोदयकाल में, दारुण व खराब ऐसे प्रसिद्ध भरणी, मघा आदि नक्षत्रों के उदय में, जिन्हें सर्प काटा हो जिन के दंश ( कटा हुए जगह ) में काला व अत्यंत लाल सूजन हो, जिनके दंश में कुछ सफेद व रुधिरयुक्त चीर दंष्ट्रपद [ दांत गढे के चिन्ह ] हो, भूख • याल की पीडा से संयुक्त, अधिक वृद्ध, क्षीणशरीवाले व बालक इन को काटा हो, जिनके शरीर में पित्त व उष्णताकी अत्यंत अधिकता हो, जो अजीर्ण रोगसे पीडित हों, जिनके नाक मुडगया हो, मुख टेढा होगया हो, संधिबंधन [हड्डियों के जोड ] एकदम शिथिल होगया हो, रुक रुक कर बोलता हो, जावडा स्थिर होगया हो [हिले नहीं ] ऐसे सर्प से काटे हुए मनुष्यों को असाध्य समझ कर छोड़ देवें ॥१३०॥
सर्पदष्ट के असाध्यलक्षण. राज्यो नैवाहतेषु प्रकटतरलताभिः क्षतेनैव रक्तं । शीतांभोभिर्निषिक्ते न भवति सततं रोमहर्षो नरस्य ॥ वर्तिर्वक्त्रादजस्रं प्रसरति कफजा रक्तमूर्ध्व तथाधः ॥
सुप्तिर्मुक्तं विदार्य प्रविदितविधिना वर्जयेत् सर्पदष्टान् ॥ १३१ ॥ भावार्थ:- लता ( कोडा, वेत आदि ) आदि से मारने पर जिनके शरीर में रेखा ( मार का निशान ) प्रकद न हों और शस्त्र आदि से जखम करने पर उस से
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