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कल्याणकारके
त्रिविधपदार्थ व पोषकलक्षण. त्रिविधमिहादितं जगति वस्तुसमस्तमिदं । निजगुणयुक्तपोषकविघातक नोभयतः॥ दधिघृतदुग्धतक्रयवशालिमसरगुडा-।
द्यखिलमपापहेतुरिति पोषकमात्महितम् ॥ २४ ॥ भावार्थ:-इस लोकमें जितने भी वस्तु हैं वे सब तीन भेदसे विभक्त हैं । एक पोषक गुणसे युक्त, दूसरा विघातक गुणसे युक्त व तीसरा पोषक व विघातक दोनो गुणोंसे रहित । दही, घी, दूध, छाछ, जौ, शालि, मसूर, गुड आदि के सेवन पापके कारण नहीं है और आत्माहत को पोषण करने वाला है । अतएव ऐसे पदार्थ पोषक कहालते हैं ॥ २॥
विघात व अनुभयलक्षण. विषमधुमद्यमांसनिकरायतिपापकरं । भवभवघातको भवति तच्च विघातकरं ॥ तृणबहुवृक्षगुल्मचयवीरुध एव तृणा-।
मनुभयकारिणो भुवि भवेयुरभक्षगणाः ॥ २५ ॥ भावार्थ:-विष, मधु, मद्य, मांस आदि पदार्थ मनुष्यको अत्यंत पापार्जन करानेवाले हैं और भवभवको बिगाडनेवाले हैं। इसलिये उनको विघातक कहा है। घास, बहुतसे वृक्ष, गुल्म, वीरुध वगैरह मनुष्योंको न विघातक हैं न पोषक हैं । परंतु मनष्योंके लिये लोकमें ये अभक्ष्य माने गये हैं ॥ २५ ॥
मद्यपान से अनर्थ. नयविनयाद्युपेतचरितोऽपि विनष्टमना । विचरात सर्वमालपति कार्यमकार्यमपि ।। स्वसृदुहितृषु मातृषु च कामवशाद्रमते । शुचिमशुचिं सदा हरति मद्यमदान्मनुजः ॥ २६ ॥ अथ इह मद्यपानमातिपापविकारकरं । परुषतरामयैकनिलयं नरलाघवकृत् ॥ परिहृतमुत्तमैरखिलधर्मधनैः पुरुषै- । रुभयभवार्थघातकमनर्थनिमित्तमिति ।। २७ ॥
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