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________________ बोलपहभूततंत्राधिकारः। (४५९) ... भावार्थ:-मसूर, मूंग, अरहर आदि धान्यों से बने हुए घृतमिश्रित यूषखल, खट्टे फल इनसे उस रोगी को दिन में एक बार लघुभोजन कराना चाहिये। फिर उस के बाद कम क्रम से उसकी वृद्धि करते हुए अंत में सभी भोजन खिलावें ॥ ५७ ॥ व्रणक्रियां साधु नियुज्य साधयेदुपद्रवानप्यनुरूपसाधनैः। घृतानुलिप्तं शयने च शाययेत् सुचर्मपद्मोत्पलपत्रसंवृते ॥ ५८ ॥ भावार्थ:-मसूरिका रोग में, व्रणोक्त चिकित्सा को अच्छी तरह प्रयोग कर उसे साधना चाहिये । उस के साथ जो उपद्रव्य प्रकट हों तो उन को भी उन के योग्य चिकित्सा से शमन करना चाहिये । उसे, घृत लेपन कर, चर्म, कमल, नीलकमल के पत्तें जिस पर विछाया हो ऐसे शयन [ बिछौना ] पर सुलाना चाहिये ।। ५८ ॥ ___ संधिशोथ चिकित्सा. ससंधिशोफास्वपि शोफवद्विधि विधाय पत्रोधमनैश्च बंधयेत् । विपकमप्याशु विदार्य साधयेद्योक्तनाडीव्रणवद्विचक्षणः ॥ ५९॥ भावार्थ:-संधियोमें यदि शोफ हो जाय तो शोफ [ सूजन ] की चिकित्साके प्रकरण में जो विधि बताई गई है उसी प्रकार की चिकित्सा इस में करनी चाहिये । और धमन ( नरसल ) वृक्षके पत्तों से बांधना चाहिये । अथवा नाडोंसे बांधना चाहिये । यदि वह पकजाय तो बुद्धिमान् वैद्य को उचित है कि वह शीघ्र पूर्वोक्त नाडीव्रणकी चिकित्सा के समान उसको विदारण (चीर ) कर शोधन रोपण दि चिकित्सा करें ॥ ५९ ॥ - सवर्णकरणोपाय. व्रणेषु रूढेषु सवर्णकारणहरिद्रया गरिकयाथ लोहित-- द्रुमैलताभिश्च सुशीतसौरभैस्सदा विलिम्पेत् सघृतैस्सशर्करैः ॥ ६० ॥ भावार्थ:-व्रण भरजाने पर ( त्वचाको ) सर्वर्ण करने के लिये तो उसमें हलदी अथवा गेरू अथवा शीत सुगंधि चंदन वा मंजीठ इन द्रव्योंको अच्छी तरह घिसकर घी व शक्कर मिलाकर उस में सदा लेपन करना चाहिये ।। ६० ॥ ... कपित्थशाल्यक्षतबालकांबुभिः कलायकालेयकमल्लिकादलैः । पयोनिघृष्टस्तिलचंदनैरपि प्रलेपयेदव्यधुतानुमिश्रितैः ॥ ६१ ॥ १ द्रव्य, उसका प्रमाण व बार २ अन्य जगहके त्वचाके सदृश वर्ण करना । अथवा व्रण होने के पूर्व उस त्वचाका जो वर्ण था उस को वैसे के वैसे उत्पन्न करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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