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( ४५८)
कल्याणकारके :
वणावस्थापन्न मसूरिका चिकित्सा. विपाकपाकवणपीडितास्वपि प्रसाश्येत्ताः क्षतवद्विसर्पवत् । अजस्रमास्रावयुताः प्रपीडयेन्मुहुर्मुहुर्माषयवपलेपनैः ॥ ५३ ॥
भावार्थः-मसूरिका पक जाने पर यदि व्रण हो. जावें तो क्षत ( जखम ) व विसर्प रोग की चिकित्सा करें। यदि वह सदा स्रावसहित हो तो बार.२.. उडद. जौ का लेपन से पीडन करना चाहिये ।। ५३ ।।
शोषणक्रिया व क्रिमिजन्यमसूरिकाचिकित्सा. मुभस्मचूर्णेन विगालितेन वा विकीर्य सम्यक्परिशोषयेद्बुधः। कदाचिदुद्यत्क्रिमिभक्षिताश्च ताः क्रिमिघ्नभैषज्यगणैरुपाचरेत् ॥ ५४ ॥
भावार्थ:--अच्छे भस्म को पुनः अच्छी तरह ( छलनी आदिसे ) छानकर उसे उन मसूरिकावोंपर डालें जिससे वह स्राव सूख जायगा। यदि कदाचित् उन मसूरिका व्रणो में क्रिमि उत्पन्न हो जाय तो क्रिमिनाशक औषधियों से उपचार करना चाहिये ॥५४॥
. वीजन व धूप... अशोकनिंबाम्रकदंबपल्लवैः समंततस्संततमेव धीजयेत् । सुधूपयेद्वा गुडसर्जसदसैः सगुग्गुलुध्यात्मककुष्ठचंदनैः ॥ ५५ ॥
भावार्थ-मसूरिका से पीडित रोगीको अशोक, नीम, कदम, इन वृक्षोंके पत्तोंसे सदा पंखा करना चाहिये । एवं गुड, राल, गुग्गुल कत्तृण नामक गंधद्रव्य (रोहिस सोधिया ) चंदन इन से धूप करना चाहिये ॥ ५५ ॥ .
. दुर्गंधितपिच्छिल मसूरिकोपचार. स पूतिगंधानपि पिच्छिलव्रणान् वनस्पतिक्वाथमुखोष्णकांजिका जलैरभिक्षाल्य तिलैस्सुपेशितै बृहत्तदृष्मणशमाय शास्त्रवित् ॥ ५६ ।।
भावार्थः -- मसूरिकाजन्य व्रण दुर्गधयुक्त व पिच्छिल [ पिलपिली लिवलिवाहट ] हो तो उसे नींब क्षीरीवृक्ष, आदि वनस्पतियोंके क्वाथ व साधारण गरम कांजीसे धोकर ती. उष्णता के शमनार्थ, तिल को अच्छी तरह पीस कर, वैद्य उस पर लगावें ॥६६॥
मसूरिको को. भोजन. .मसरमुद्रप्रवराढकीगणेघृतान्वितैर्युषखलैः फलाम्लकैः। स एकवारं लघुभोजनक्रमक्रमेण संभोजनमेव भोजयेत् ।। ५७ ।
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