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________________ (४५६) कल्याणकारके भावार्थ:-- उस रोगीको मीठे शाक व अन्य मीठे पदार्थ और मुद्गयूष [ मूंग की दाल ] के साथ साठी चावल के भात को खिलाना चाहिये अथवा शीतल द्रव्योंसे पकाई हुई घृत से युक्त शीतल यवागू खिलानी चाहिये || ४४ ।। तृष्णाचिकित्सा व शयनविधान. मुशीतलं वा श्रुतशीतलं जलं पिबेत्तृषार्तो मनुजस्तदुद्गमे । तथीदकोद्यत्कदलीदलाश्रित शयीत नित्यं शयने मसरिकी ।। २५ ॥ भावार्थ:-मसूरिका रोगसे पीडित रोगी को प्यास लगे तो वह बिलकुल ठंडे या पकाकर ठंड किये हुए जल को पावें । एवं मसूरिका निकलने पर पानी से भिगोये गये केलों के पत्ते जिसपर बिछाये हों ऐसे शयन [ बिछौना ] में वह हमेशा सोवें ॥ ४५ ॥ दाहनाशकोपचार. तदुद्भवोन्दूतविदाहतापित शिराश्च व्यध्वा रुधिरं प्रमाक्षयेत् । प्रलेपयेदुत्पलपअकेसरैः सचंदनैनिवपयोंघ्रिपांकुरैः ।। ४६ ॥ भावार्थ:-मसरिका होने के कारण से उत्पन्न भयंकर दाह से यदि शरीर तप्तायमान हो रहा है तो शिरामोक्षण कर रक्त निकालना चाहिये और नीलकमल, कमल, नागकेसर व चन्दन से, अथवा नींब, क्षीरीवृक्षों के कोंपल से लेप करना चाहिये ॥ ४६॥ शर्करादि लेप. सशर्कराकिशुकशाल्मालद्रुमप्रवालमूलैः पयसानुपेषितः । प्रलेपयेष्मनिवारणाय तद्रुजाप्रशांत्यै मधुरैस्तथापरैः ॥ ४७ ॥ भावार्थ-इसी प्रकार ढाक सेमल इन वृक्षों के कोंपल व जडको दूध में पसिकर उस में शक्कर मिलाकर, गर्मी व पीडाके शमन करने के लिये लेप करें। इसी प्रकार अत्यंत मधुर औषधियों को भी लेप करना चाहिये ॥ ७ ॥ - शैवलादि लेप व मसूरिकाचिकित्सा. सशैवलोशारकशेरुकाशसत्कुशांघिभिस्सेक्षुरसैश्च लेपयेत् । ममूरिकास्तैर्विषनाश्व या यथाविषघ्नभैषज्यगर्विशेषकृत् ॥ ४८ ॥ १ विद्वान् इति पाठांतर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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