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बालंग्रह भूततत्राधिकारः। (४५५) कफजरक्तजसन्निपातजमसूरिकालक्षण. कफायनस्थूलतरातिशीतलाश्चिरमपाकाः शिशिरज्वन्विताः । प्रवालरक्ता बहुरक्तसंभवाः समस्तदोषैरखिलोग्रवेदनाः ॥ ४० ॥
भावार्थ:-कफविकार से होनेवाली मसूरिका घट्ट ( कडा), स्थूल, अतिशीतल , शीतपूर्वक ज्वर से युक्त व देरसे पकनेवाली होती है। रक्तविकार से उत्पन्न मसूरिका मूंगे के वर्ण के समान लाल होती है । सन्निपातज हो तो उस में तीनों दोपोंसे उत्पन्न उग्र लक्षण एक साथ पाये जाते हैं ॥ ४० ॥
मसरिका के असाध्य लक्षण शराववानिम्नमुखाः सकर्णिका विदग्धवन्मण्डलमण्डिताश्च याः। घनातिरक्तासितवक्त्रविस्तृताः ज्वरातिसारोद्गतशूलसंकलाः॥४१॥ विदाहकंपातिरुजातिसारकात्यरोचकाध्मानतृषातिहिकया। भवंत्यसाध्याः कथितैरुपद्रवरुपद्रुताःश्वाससकासनिष्ठुरैः॥ ४२ ॥
भावार्थ:--जो मसूरिका सरावके समान नीचे की ओर मुखबाली है, (किनारे तो ऊंचे बीच में गहरा) कर्णिका सहित है, जलजानेसे उत्पन्न चकत्तों के सदृश चकत्तोसे युक्त है, घट्ट (कडा) है, अत्यंत लाल व काली है, विस्तृत मुखवाली है, वर अतिसार, शूल जिस में होते है, एवं दाह, कंप, अतिपीडा, अतिसार, अति अरोचकता, अफराना, अतितृषा, हिचकी, और प्रबलश्वास, कास आदि कथित उपद्रवों से संयुक्त होती है उस मसूरिका को असाध्य समझें ॥ ४१ ॥ ४२ ॥
मसूरिका चिकित्सा. विचार्य पूर्वोद्गतलक्षणेष्वलं विलंघनानंतरमेव वाममेत् । सनिंबयष्ठीमधुकाम्बुभिर्वरं त्रिवृत्ताद्यसितया विरेचयेत् ॥ ४३ ॥
भावार्थ:-मसूरिका के पूर्वरूप के प्रकट होने पर रोगी को अच्छी तरह लंघन कराकर नींब व ज्येष्ठमधु के कपाय से वमन कराना चाहिये। एवं निशोत व शक्कर से विरेचन भी कराना चाहिये ॥ ४३ ॥
पथ्यभोजन, समुद्यूरैरपि षष्ठिकोदनं सतिक्तशाकैर्मधुरैश्च भोजयेत् । मुशीतलद्रव्यविपक्वशीतला पिवेद्यवागूमथवा घृतप्लुताम् ॥ ४४ ।।
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