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________________ प्रथम परिच्छेदः मंगलाचरण व आयुर्वेदोत्पत्ति भगवान आदिनाथ से प्रार्थना भगवान् की दिव्यध्वनिः वस्तु चतुष्टयनिरूपण आयुर्वेदशास्त्रका परंपरागमनक्रम ग्रंथकार की प्रतिज्ञा ग्रंथरचनाका उद्देश दुर्जननिंदा आचार्यका अंतरंग वैद्यशब्द की व्युत्पत्ति आयुर्वेदशब्दका अर्थ शिष्यगुणलक्षण कथनप्रतिज्ञा आयुर्वेदाध्ययनयोग्य शिष्य वैद्यविद्यादानक्रम विद्याप्राप्ति के सावन वैद्यशास्त्रका प्रचानध्येय लोकशब्द का अर्थ चिकित्सा के आधार चिकित्सा के चार पाद वैद्यलक्षण चिकित्सापद्धति अरिष्टलक्षण रिष्टसूचक दूतलक्षण अशुभशकुन शुभशकुन विषयानुक्रमणिका. Jain Education International पृष्ट सं. २ ३ ४ 8 १० १० ११ ११ १२ १२ १३ सामुद्रिकशास्त्रानुसार अल्पायु महायु परीक्षा उपसंहार द्वितीय परिच्छेदः मंगलाचरण और प्रतिज्ञा स्वास्थ्यका भेद परमार्थस्वास्थ्यलक्षण व्यवहारस्वास्थ्यलक्षण साम्यविचार प्रकारांतर से स्वस्थदक्षण अवस्थाविचार अवस्थाओंके कार्य अवस्थांतर में भोजन विचार जठराग्निका विचार विकृत जठराग्नि मेद विषमआदिक चिकित्सा समानिके रक्षणोपाय बलपरीक्षा बलकी प्रधानता बलोत्पत्तिके अंतरंग कारण बलवान्मनुष्यके लक्षण जांगलादित्रिविध देश जांगलदेशलक्षण अनूपदेशलक्षण साधारण देशलक्षण सात्म्य विचार पृष्ठ सं. For Private & Personal Use Only १४ १५ १७ १७ १७ १७ १८ १८ १८ १८ १९ १९ १९ २० २० २० २० २० २१ २१ २१ २२ A W २३ २४ www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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