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( ४४४ )
कल्याणकारके
शोषराज की सार्थकता.
विविधविषमरोगाशेषसामंतबद्धः । प्रकटितनिजरूपी दूतकेतुप्रतानः ॥ दुरधिगमविकारों दुर्निवार्योऽतिवीर्यो । जगदभिभवतीदं शोषराजो जिगीषुः ॥ ३ ॥
भावार्थ:- जो नाना प्रकार के विषम रोगसमूहरूपी सामंत राजाओं से युक्त है, प्रकट किये गये अपने लक्षणरूपी स्वरूप ( पराक्रम ) से अन्यरोग लक्षणरूपी राजाओंके ध्वजा को जिसने नष्ट कर दिया है, [ शरीरराज्य में अपना प्रभुत्व जमा लिया है ] जिस के वीर्य ( शक्ति व पराक्रम ) के सामने चिकित्सा रूपी शत्रुराजा का ठहरना अत्यंत दुष्कर है, ऐसा दुरधिगम [ जानने के लिये कठिन ] शोषराज सब को जीतने की इच्छा से जगत् को परास्त करता है ॥ ३ ॥
क्षयके नामांतरोकी सार्थकता.
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क्षयकरणविशेषात्संक्षयस्स्याद्रसादे - । रनुदिनपतितापशोषणादेष शोषः ॥ नृपतिजनविनाशाद्राजयक्ष्मेति साक्षा- । दधिगतबहुनामा शोषभूपो विभाति ॥ ४ ॥
कारण से "
क्षय,
भावार्थ:-- रस रक्त आदि धातुओंको क्षय करने के उन्हीं धातुओंको, अपने संताप [ ज्वर ] के द्वारा प्रतिदिन शोषण [ सुखाना ] करते रहनेसे " शोष, " राजी महाराजाओं को भी नाश कर देने के कारण "राजयक्ष्मा " [ राजरोग ] इत्यादि अनेक सार्थक नामों को धारण करते हुए यह क्षयराज संसार में शोभायमान होता है । अर्थात्, क्षय, शोष, राजयक्ष्मा इत्यादि तपेदिक रोग के अनेक सार्थक नाम हैं !! ४ ॥
शोषरोगकी भेदाभेदविवक्षा.
अधिकतरविशेषाद्द्वौणमुख्यप्रभेदात् । पृथगथ कथितोऽसौ शोषरोगः स्वदोषैः ॥ सकलगुणनिधानादेकरूपक्रियाया - ।
स्स भवति सविशेषस्संनिपातात्मकोऽयम् ॥ ५॥
१ राजा जैसा समर्थ पुरुष भी इस रोग से पीडित हो जावें तो रोगमुक्त नहीं होते हैं ।
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