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________________ क्षुद्ररोगाधिकारः। (४२९) कफजयोनिरोग चिकित्सा. प्रचुरकण्डुरयोनिषु तक्षिणभ- । पजगणैस्तीफलसैंधवैः । प्रतिदिनं परिपूरणमिष्टमि- । त्यहिममूत्रगणैरपि धावनम् ।। ८० ॥ भावार्थ-जिस में अत्यधिक खुजली चल रही हो, ऐसे कफज योनिरोगों में तीदण औषधियां तथा कटेहरी के फल, सेंधालोण, इन के चूर्ण को प्रतिदिन भरना चाहिए। तथा गरम किए हुए गोमूत्र, बकरी के मूत्रा आदि. मूत्रावर्ग से धोना भी चाहिये ॥ ८० ॥ कर्णिनी चिकित्सा. प्रबलकर्णवतीष्वीप शोधनैः । कृतसुवर्तिमिहाधिकभषजैः । इह विधाय विशोधनसर्पिषा, प्रशमयेदथवांकुरलेपनैः ।। ८१ ॥ भावार्थ:-- कर्णिनी योनिरोग को शोधकीधीशष्ट औषधियोद्वारा निर्मित . . बत्ती ( योनिपर ) रखना उन्ही औषधियों से सिद्ध घृत, पोया ( पिचु ) धारण कराना व पिलाना चाहिये एवं अर्शनाशक लेपों के लेपन से शमन करना चाहिये ॥ ८१ ॥ प्रसंसनीयोनिरोग चिकित्सा. अपि च योनिमिहात्यवलंबिनी, घृतविलिप्ततनुं प्रविवेशितम् । ... तिलजजीरकया प्रपिधाय तामधिकबंधनमेवसमाहरेत् ।। ८२ ॥ भावार्थ:--नीचेकी ओर अत्यंत लटकती हुई ( प्रस्रंसिनी) योनीको घृत का लेपन कर के फिर तिलके तेल व जीरे से उसे ढककर अर्थात् उनके कल्क को उस पर रख कर, उसे अच्छीतरह बांधना चाहिये ॥ ८२ ॥ योनिरोगचिकित्सा का उपसंहार. इति जयेत्क्रमतो बहुयोनिजामयचयान्पतिदोषकृतौषधैः । निखिलधावनधूपनपूरणैः मृदुविलेपनतर्पणबंधनः ॥८३॥ भावार्थ:-इस प्रकार बहुत से प्रकार के योनिजरोगों को क्रम से तत्तद्दोष नाशक औषधियों से धावन, ( धोना ) धूपन, [ धूप देना ] पूरण, [ भरना ] लेपन तर्पण व बंधन विधि के प्रयोग कर जीतना चाहिये ॥ ८३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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