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________________ कल्याणकारकै भावार्थ:--पीपल के चर्ण को जठराग्नि के बढाने के लिये गरम पानी में मिलाकर अथवा शुंठीके कल्कको गरम पानी में मिलाकर या हरड और लवण इनके चूर्ण को गरम पानी में मिलाकर पीना चाहिये ॥ ३१ ॥ . कुलत्थ काथ. कथितमुष्ककभस्मविगालितो । दकविपककुलस्थरसं सदा ॥ लवणितं त्रिकटूत्कटमातुरः सततमग्निकर प्रपिवेन्नरः ॥ ३२ ॥ भावार्थ:-मोरवाके भस्म से काथ कर उस काथ को छानें फिर उस के द्वारा उस पकाये हुए कुलथी के रस में उवण व त्रिकटु मिलाकर सदा अजीर्ण से पीडित पीयें तो अग्निदीपन होता है ॥ ३२॥ विशूचिका चिकित्सा. मधुकचंदनवालजलांबुदांबुरुहनिबदलांघ्रिसुतण्डुला- । म्बुभिरशेषमिदं मृदितं पिबेत् प्रशमयंस्तृषयातिविचिकाम् ॥ ३३ ॥ भावार्थ:--मुलैठी, चंदन, खस, नेत्रबाला नागरमोथा, कमल, नीमके पत्ती व उसके जड को चावल के धोबन में मर्दनकर पिलावे तो यह विचिका रोग को तृषासे प्रशमन करता है ॥ ३३ ॥ त्रिकटुकाद्यजन. त्रिकटुकत्रिफलारजनीद्वयोत्पलकरंजसुबीजगणं शुभम् ॥ फलरसेन विशोष्यकृताननं प्रशमयत्यधिकोग्रविचिकाम् ॥ ३४ ॥ भावार्थ:-त्रिकटु, त्रिफला, हलदी, नीलकमल, करंज के बीज, इन को खट्टे फलोंके रसके साथ बारीक पीसकर सुखावें, इस प्रकार तैयार किये गये अंजन को आंजनेसे उग्र विचिका भी दूर होती है ॥ ३४ ॥ अलसकोऽप्यतिकृछू इतीरितः । परिहरेदविलीबविलंबिका ॥ अपि विषाचकया परिपीडिता- । निह जयेदतिसारचिकित्सितैः ॥३५॥ भावार्थ:--अलसक रोग अत्यंत कष्ट साध्य है । विलम्बिका को भी शीघ्र छोड देना चाहिये । विशूचिकास पीडित रोगीको अतिसारोक्त चिकित्सा के प्रयोग से ठोक करना चाहिये ॥ ३९॥.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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