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________________ ( ४१४ ) भावार्थ:- अब यहां से आगे अजीर्ण रोग का लक्षण, भेद आदि के साथ वर्णन करेंगे । जो खाया हुआ आहार जीर्ण न हो [ पचे नहीं ] इसे अजीर्ण रोग कहते हैं । इस का आमोजीर्ण, विदग्धाजीर्ण, विष्टब्धाजीर्ण इस प्रकार तीन भेद हैं । खाया हुआ अन्न कच्चा और मधुर रहें, मीठा डकार आदि आवे इसे आमाजीर्ण कहते हैं । जब भक्षित आहार थोडा पच कर खट्टा हो जावें उसे विदग्धाजीर्ण कहते हैं । जिस से पेट में अत्यंत पीडा होती हो, और पेट फूल जायें और मल भी रुक गया हो उसे विष्टब्धाजीर्ण कहते हैं ॥ २३ ॥ कल्याणकारक अजीर्ण से अलसक विलम्बिका विशुचिका की उत्पत्ति. अलसकं च विलंविकया सह । प्रवरतीव्ररुजा तु विषूचिका ॥ भवति गौरिव योऽत्ति निरंतरं । बहुतरान्नमजर्णिमतोऽस्य तत् ॥ २४ ॥ भावार्थ:- जो मनुष्य नानाप्रकार अन्नोंको गायके समान हमेशा खाता रहता है उसे अजीर्ण होकर भयंकर अलसक, विलम्बिका और अत्यंत तीव्र पीडा करनेवाली विसूचिका रोग उत्पन्न होता है || २४ ॥ अलसक लक्षण. उदरपूरणतातिनिरुत्सहो । वमथुतृमरुदुद्भूमकूजनम् ॥ मलनिरोधन तीव्ररुजारुचि - | स्त्वलसकस्य विशेषितलक्षणम् ॥ २५ ॥ भावार्थ:- जिसमें पेट बिलकुल भरा हुआ मालुम हो रहा हो, अत्यंत निरुसाह मालुम हो रहा हो, वमन होता हो, नीचे की तरफ से बात रुक् कर ऊपर कंठ आदि स्थानोंमें फिरता हो, मलमूत्र रुक जाता हो, तीव्र पीडा होती हो, और अरुचि हो उसे अलसक रोग जानना चाहिए । अर्थात् यह अलसक रोग का लक्षण है ||२५|| विलम्बिका लक्षण. कफमरुत्मबलातिनिरोधतो । ह्युपगतं च निरुद्धमिहाशनं ॥ इह भवेदतिगाढविलंबिका | मनुजजन्मविनाशनकारिका || २६|| भावार्थ - कफ व वातके अत्यंत निरोधसे खाया हुआ आहार न नीचे जाता है न ऊपर (न विरेचन होता है न तो वमन हो ) ही जाता है अर्थात् एकदम रुक जाता है उसे विलंबिका रोग कहते हैं । यह अत्यंत भयंकर है । वह मनुष्यजन्मको नाश करनेवाला है - ॥ २६ ॥ .१ भमाजीर्ण कक्क से, विदग्धाजीर्ण पित्त से और विष्टब्धाजीर्ण वात से उत्पन्न होता है || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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