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(४१०)
कल्याणकारके
अथ हृद्रोगाधिकारः ।
वातज हृद्रोग चिकित्सा. पवनदोषकृताधिकवेदना- । हृदयरोगनिपीडितमातुरम् ।। मगधजान्वितसर्षपमिश्रितै- । रहिमवारिभिरेव च वामयेत् ॥ ५ ॥
भावार्थ:--वातके विकार से जब हृदय में अत्यधिक वेदना होती है उस रोगी को अर्थात् वातज हृद्रोग से पीडित रोगी को पीपल सरसों से मिला हुआ गरम पानी पिलाकर वमन कराना चाहिये ॥ ५ ॥
वातज हृद्रोगनाशक योग. लवणवर्गयवोद्भवमिश्रितं । घृतमतः प्रपिबंददयामयी ॥ त्रिकटुहिंग्वजमोदकसैंधवा- । नपि फलाम्लगणैः पयासाथवा ॥ ६ ॥
अर्थ-वातज हृदयरोगीको लवणवर्ग व यवक्षार से मिला हुआ घृत पिलावें । एवं त्रिकटु, हींग, अजवाईन व सेंधालोण इनको खट्टे फलसमूहके रसके साथ अथवा दूध के साथ पिलाना चाहिये ॥६॥
पित्तज हृद्रोगचिकित्सा. अधिकपित्तकृते हृदयामये । घृतगुडाप्लुतदुग्धयुतौषधैः ।। वमनमत्र हितं सविरेचनम् । कथितपित्तचिकित्सितमेव वा॥७॥
अर्थ-यदि पित्त के विशेष उद्रके से हृदय रोग होजाय तो उस में [ पित्तज हृदय रोगमें ] घृत, गुड व दूध से युक्त [ पित्तनाशक ] औषधियोंसे वमन कराना ठीक है एवं विरेचन भी कराना चाहिए । साथ ही पूर्वकथित पित्तहर चिकित्सा करनी चाहिये ॥ ७॥
कफज हृदोगचिकित्सा. कफकृतोग्रमहाहृदयामये । त्रिकटुकोष्णजलैरिह वामयेत् । अपि फलाम्लयुता त्रिवृता भृशं । लवणनागर कैस्स विरेचयेत् ॥ ८ ॥
अर्थ---कफविकारसे उत्पन्न हृदयगत महारोग में [कफज हृद्रोग में ] त्रिकटु से युक्त उष्णजलसे वमन कराना चाहिये । एवं निशोथ, खट्टा फल, सेंधालोण व शुंठीसे विरेचन कराना चाहिए ॥८॥
हृद्रोग में वस्तिप्रयोग. तदनुरूपविशेषगुणौषधै- । रखिलबस्तिविधानमपीष्यते ॥ हृदयरोगगणपशमाय तत् । क्रिमिकृतस्य विधिश्च विधीयते ॥९॥
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