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क्षुद्ररोगाधिकारः।
(४०७).
भावार्थ:- दोषों की अपेक्षा से लिये गये ( जिन की जहां जरूरत हो) सम्पूर्ण औषधियों से संयुक्त अथवा सिद्ध घृत के पीने से नवीन प्रतिश्याय रोग [ अपक्क ] शमन होता है, एवं इसपर [पाकार्थ ] स्वेद, अभ्यंग [ मालिश ] सोंठ, मिरच, पीपल आदि से गण्डूष, वमन अदि शुद्धिविधान का प्रयोग करना चाहिये । कालांतर में जो पक्क होगया है जिसका कफ गाढा होगया है उसे. नस्यप्रयोग करके बहाना चाहिये ।।९६॥
वात, पित्त, कफ, व रक्तज प्रतिश्यायचिकित्सा. वाते पंचप्रकटलवणैर्युक्तसर्पिः प्रशस्तं । पित्ते तिक्तामलकमधुरैः पक्कतमेतच्च रक्ते। श्लेष्मण्युष्णैरतिकटुकतिक्तातिरूक्षैः कषायैः ॥
पेयं विद्वद्विहितविधिना तत्प्रतिश्यायशांत्यै ।। ९७ ॥ भावार्थ:-यदि वह प्रतिश्याय बातज हो तो घृतमें पंचलवण मिलाकर पीना अच्छा है । पित्तज व रक्तज हो तो कडुआ आम्ल व मधुर रसयुक्त औषधियों से पकाया हुआ घृत पीना हितकर है । कफन प्रतिक्ष्याय में उष्ण अतिकटक तिक्त, रूक्ष और कषैली औषधियों में सिद्ध घृतको विधिपूर्वक पिलाये तो प्रतिश्याय की शांति होती है ।
प्रतिश्यायपाचनके प्रयोग. पाकं साक्षाव्रजति सहसा सोष्णशुंठीजलेन । क्षीरेणापि प्रवरमधुशिग्रुप्रयुक्ताद्रकेण ॥ तीक्ष्णभक्तः कटुकलकलायाढकीमुद्गरैः ।
कौलत्यामलमरिचसहितैस्तत्पतिश्यायरोगः ।। २८ ।। भावार्थः ---शुण्ठी से पकाये हुए गरम जलको पिलानेसे, लाल सेंजन व आद्रक से सिद्ध दूब के पीने से, तीक्ष्णभक्त राई, कल (बेर ) मटर, अरहर व मूंग इनसे सिद्ध यूष { दाल ] से और मिरच के चूर्ण से सहित कुलथी की कांजी के सेवन से प्रतिश्याय रोग शीघ्र ही पक जाता है ||२८||
___ मन्निपातज व दुष्ट प्रतिश्यायचिकित्सा.
सोष्णक्षारैः कटुगणविपकतैः वावपीडै- । स्तोणेनस्यैरहिमपरिषेकावगाहावलहैः ।। गण्डूपैर्वा कवलबहुधूमप्रयोगानुलेपैः । सद्यः शाम्यत्यखिलकृतदुष्टप्रतिश्यायरोगः ॥१९॥
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