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क्षुद्ररोगाधिकारः।
भावार्थ:-मूत्रवर्ग व हलदी हरड़ बहेडा आंवला, खट्टी, क्षार, कडुआ, कटुक उष्ण व कषैली औषधियोंके कषाय से अरोचक रोगीके मुख को प्रक्षालन [कुल्ला) कराना चाहिये । एवं खट्टा कटु आदि रस युक्त दांतूनों से दांतून कराना व योग्य अवलेहोंको भी चटाना हितकर है ॥ ५५ ॥
पथ्य भोजन. आम्लतिक्तकटुसौरभशाकै- | सृष्टरूक्षलघुभोजनमिष्टम् ।
संततं स्वमनसोप्यनुकूलं । विदरोचकनिपीडितनृणाम् ॥ ५६ ॥ .. भावार्थ:-जो अरोचक रोग से पीडित हैं उन रोगियों को सदा खट्टा, कडुवा कटुक ( चरपरा ) मनोहर शाक भाजियोंसे युक्त स्वादिष्ट रूक्ष व लघु भोजन कराना हितकर होता है। एवं यह भी ध्यान में रहे कि वह भोजन उस रोगीके मनके अनुकूल हो ।। ५६ ॥
अथ स्वरभदरोगाधिकारः।
__ स्वरभदनिदान व भेद. स्वाध्यायशोकविषकंठविघातनोच्च- । भाषायनेकविधकारणतः स्वरोप- ॥ घातो भविष्यति नृणामखिलैश्च दोष-- ।
मैदोविकाररुधिरादपि षडविधस्सः ॥ ५७ ।। भावार्थ:-जोरसे स्वाध्याय [ पढना ] करना, अतिशोक, विषभक्षण, गले में लकडी आदि से चोट लगना, जोर से बोलना, भाषण देना आदि अनेक कारणों से मनुष्यों को स्वर का घात [ नाश ] होता है [ गला बैठ जाता है । जिसे, स्वरभेद रोग कहते हैं । यह प्रकुपित वात, पित्त, कफ, त्रिदोष, मेद, व रक्त से उत्पन्न होता है। इसलिये उस का भेद छह है ॥५७॥
वातात्तिकफज स्वर भेदलक्षण. वाताहतस्वरनिपिडितमानुषस्य । भिन्नोरुगर्दभखरस्वरतातिपित्तान् ॥ संतापितास्यगलशोषविदाहतृष्णा ।
कंठावरोधिकफयुक्फतः स्वरः स्यात् ।। ५८ ॥ भावार्थ:-वातिक स्वर भेदसे पीडित मनुष्य का स्वर निकटते समय टूटासा माल्म होता है गधे के सदृश कर्कश होता है। पित्तज रोग से पीड़ित को बोलते समय
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