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________________ (३७६) कल्याणकार संवेदिताग्निशितशस्त्रमुखेन यत्नात् । तान्साधयेदभिहिताखिलतप्तयोगैः ॥ २७४ ॥ 16 भावार्थ ---- बहुत से नेत्र रोग शस्त्रक्रिया से साध्य होनेवाले हैं । उनको आंख में घृत लेपन करके उष्ण जल व वस्त्रके टुकडे द्वारा स्वेदन करें । फिर प्रयत्नपूर्वक तीक्ष्ण . शस्त्रप्रयोग से पूर्वोक्त विधि प्रकार साधन करें ॥ २७४ ॥ Jain Education International लेखन आदिशस्त्रकर्म. निर्भज्य वर्त्म पिचुना परिमृज्य यत्नात् । लेख्यान्विलिख्य लवणैः प्रतिसारयेत्तत् ॥ भेद्यान्विभिद्य बलिशैः परिसंगृहीतान् । छेद्यागमनुसंश्रितसर्वभावान् ॥ २७५ ॥ छिद्यात्सिराच परिवेध्य यथानुरूपं । वेध्यान् जयेद्विदितवेदविदां वरिष्ठः ॥ पश्चादपि प्रकटदोषविशेषयुक्त्या सद्भेषजैरुपचरेदखिलांजनाद्यैः ॥ २७६ ॥ भावार्थ:-- आंख के पलकोंको अच्छीतरह खोलकर पिंचु [ पोया ] से पहिले उसे साफकर देवें । तदनंतर लेख्य रोगोंको लेखनकर लवणसे प्रतिसारण करना चाहिए । aise शस्त्रसे पकडकर भेव रोगोंको भेदन करना चाहिये व छेद्य रोगोंको व अपांग में आश्रित सर्व विकारोंको छेदन करना चाहिये । वेध्य रोगोंको यथायोग्य शिरावेध [ फस्त खोल ] करके आयुर्वेद जाननेवालों में वरिष्ठ वैद्य जीतें । उपरोक्त प्रकार छेदन आदि करनेके बाद भी दोषानुरूप औषधि व अंजन इत्यादिके प्रयोग से युक्तिपूर्वक उपचार करें ।। २७५-२७६ ॥ पक्ष्मको पचिकित्सा. पक्ष्मप्रकोपमपि साधु निपीड्यना- । रुद्रधयेत् ग्रथितचारुललाटपट्टे || पक्ष्माभिवृद्धिमवलोक्य सुखाय धीमान् । आमोचयेदखिलनाल कृतप्रबंधान् ॥ २७७ ॥ भावार्थ -- पक्ष्मप्रकोपमें भी उसको अच्छी तरहसे दबाकर नालियोंसे प्रथित ललाटपट्टू (माई) को बांधना चाहिये | जब पक्ष्मवृद्धि होती हुई दिखे तो रोगीको कष्ट न हो इस इच्छासे उस बंधनको खोलना चाहिये ॥ २७७ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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