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सिद्धनागार्जुन. यह पूज्यपादके भानजे थे । इन्होंने नागार्जुनकल्प, नागार्जुनकक्षपुट आदि ग्रंथोंका निर्माण किया था। इसके अलावा मालुम होता है कि इन्होंने 'वज्रखेचरघुटिका” नामक सुवर्ण बनाने की रत्नगुटिका को तैयार की थी। जब ये इस औषध को तैयार करने के संकल्पसे आर्थिकमदत को मांगनेके लिए किसी राजाके पास गये थे, तब राजाने पूछा कि यदि आपके कहने के अनुसार गुण न आवे तो आपका प्रण क्या रहेगा ? नागार्जुनने उत्तर दिया कि मेरी दोनों आंखों को निकाल सकते हैं । राजाने उन को सहायता दी, उन्होंने प्रयत्नकर एक वर्षके अंदर इस औषध को तैयार करके एवं उसकी तीन मणियोंको बनाकर उन पर अपने नामको खोदा । बाद जब नदीमें ले जाकर उन मणियोंको
धोरहे थे तब हाथसे फिसलकर नदी में गिर पड़ी। राजाने प्रतिज्ञाके अनुसार दोनों आंखोंको निकलवाई । नागार्जुन दोनों आंखोंसे अंधे हुए व देशांतर चले गये। एक वेश्या-त्रीको उन मणियोंको निगली हुई मछलीके मिलने पर चीरकर देखी तो तीन मणियां मिल गई । वेश्याने उन्हे लेजाकर झूलेपर रखी तो झूलेपर लटके हुए लोहेकी सांकल सोने की बन गई । तदनंतर वह वेश्या रोज लोहेको सोना बनाया करती थी । बडे २ पहाडके समान उसने सोना बनाया । एवं विपुल धनव्ययकर एक अन्नसत्र का निर्माण कर उसका "नागार्जुनसत्र" ऐसा नाम दिया। नागार्जुनने फिरते२ आकर सत्रको अपने नाम मिलनेका कारण पूच्छा । मालुम होनेपर उन्होंने उन रत्नोंको पुनः पाकर उनके बल से गई हुई आंखोंको पुन: पाया एवं राजसभामें जाकर उसके महत्वको प्रकट किया। आयुर्वेदीय औषधोमें कितना सामर्थ्य है यह पाठक इससे जान सकते हैं।
कर्णाटक जनवैधग्रंथकार. उपर्युक्त विद्वानोंके अलावा कर्णाटक भाषा में अनेक विद्वानोंने वैद्यक ग्रंथ की रचना की है । । उनमें कीर्तिवर्भ का गोवैद्य, मंगराज का खगेंद्रमणिदर्पण, अभिनवचंद्र का यशास्त्र, देवेंद्र मुनि का बालग्रह चिकित्सा, अमृतनंदि का वैद्यक निघंटु, जगदेक महामंत्रवादि श्रीधरदेव का २४ अधिकारोंसे युक्त द्यामृत, साळवके द्वारा लिखित रस रत्नाकर व वैद्यसांगत्य आदि ग्रंथ विशेष उल्लेखनीय हैं । जगद्दळ सोमनाथ ने पूज्यपादाचार्य के द्वारा लिखित कल्याणकारक ग्रंथ का कर्णाटक भाषा में भाषांतर किया है। यह ग्रंथ भी बहुत महत्वपूर्ण हुआ है । ग्रंथ पीठिकाप्रकरण, परिभाषाप्रकरण, षोडशवरचिकित्सानिरूपणप्रकरण आदि अष्टांगसे संयुक्त है। यह ग्रंथ कर्णाटक भाषाके वैद्यक ग्रंथोंमें सबसे प्राचीन है । एक जगह कर्णाटक कल्याणकारकमें सोमनाथ कविने उल्लेख किया है।
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